Letter written to Sw Anand Maitreya. It is undated and unknown if it published or not. Provisional date is Nov 1968 or a little earlierm see discussion for some clues / speculation about the date.
मेरे प्रिय,
प्रेम। आपका पत्र पाकर आनंदित हूँ।
सात्र कहते हैं कि मनुष्य एक व्यर्थ वासना है।
लेकिन व्यर्थता (uselessness) इतनी पूर्ण है कि उसे व्यर्थ कहना भी व्यर्थ ही है !
व्यर्थ का अर्थ भी अर्थ में ही है !
ऐसा लगता है कि जो अर्थ खोजने निकलता है उसके हाथ में व्यर्थता के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं पड़ता है।
अर्थ (meaning) की खोज से ही वह अनर्थ घटित होता है।
इसलिए मैं कहता हूँ : अर्थ न खोजें वरन् जो है उसे जियें।
खोजें न, जियें।
विचारें न, जियें।
साधें न, जियें।
जीवन में डूबें और बहें।
तैरें भी न।
कहीं पहुँचाना नहीं है।
और तब जहां पहुँच जाते हैं, वही मंजिल होजाती है।
जीवन फिर स्वयं ही अपना अर्थ है।
वह निष्प्रयोजन प्रयोजन (Purposeless purpose) है।
और यहीं उसका सौंदर्य भी है।
रजनीश के प्रणाम
पुनश्च : मार्च में पटना आसकता हूँ।
कहें तो तारीखें भेज दूँ / उसके पूर्व संभव नहीं है।
और आप दिसंबर या जनवरी में जबलपुर आज़ायें।
Partial translation
"PS: I can come to Patna in March. If you say then I will send the dates. It’s not possible before that. And you come to Jabalpur in December or January."