Vigyan, Dharm Aur Kala (विज्ञान, धर्म और कला)
- विज्ञान, धर्म और कला के अंतर-संबंध को समझाते हुए ओशो कहते है:
- "ये तीन बातें मैंने कहीं। विज्ञान प्रथम चरण है। वह तर्क का पहला कदम है। तर्क जब हार जाता है तो धर्म दूसरा चरण है, वह अनुभूति है। और जब अनुभूति सघन हो जाती है तो वर्षा शुरू हो जाती है, वह कला है। और इस कला की उपलब्धि सिर्फ उन्हें ही होती है जो ध्यान को उपलब्ध होते हैं। ध्यान की बाई-प्रॉडक्ट है। जो ध्यान के पहले कलाकार है, वह किसी न किसी अर्थों में वासना केंद्रित होता है। जो ध्यान के बाद कलाकार है, उसका जीवन, उसका कृत्य, उसका सृजन, सभी परमात्मा को समर्पित और परमात्मामय हो जाता है।"
- इस पुस्तक के कुछ विषय बिंदु:
- सत्य की खोज, सत्य का अनुभव, सत्य की अभिव्यक्ति
- सेवा स्वार्थ के ऊपर
- क्या हम ऐसा मनुष्य पैदा कर सकेंगे जो समृद्ध भी हो और शांत भी?
- जिसके पास शरीर के सुख भी हों और आत्मा के आनंद भी?
- जीवन क्रांति के तीन सूत्र
- धर्म का विधायक विज्ञान
- notes
- Answers to questions from seekers, time and place unknown. See discussion for TOC
- time period of Osho's original talks/writings
- (unknown)
- number of discourses/chapters
- 11
editions
Vigyan, Dharm Aur Kala (विज्ञान, धर्म और कला)
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