Talk:Krantibeej (क्रांतिबीज)

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Source for the info in this article is Neeten's Osho Source Book. Neeten's Footnotes section also mentions Gyan Bhed's attribution of a 1963 edition to Acharya Shree Rajneesh Sahitya Publication Trust in Jabalpur but this would need some confirmation. Meatiest parts of Neeten's references are found in his Jabalpur section. -- doofus-9 (talk) 18:26, 4 April 2015 (UTC)


Previously on the article page there was a Rebel 2001 edition. It had little info and the cover and ISBN were the same as the 1996 edition, so it has just been replaced whole. One thing it did have which our info on the 1996 did not have was a page count, so the 220 page count from the 2001 was presumed and "borrowed". -- doofus-9 03:47, 15 August 2017 (UTC)


"Subtitle repair" done on the basis of info received from Shailendra. Previously subtitles were created from trying to read from the cover image, with less than 100% accuracy. Note that one aspect of Shailendra's suggestion has not been incorporated: He has the last five words as "बीज ही ना रह जाए (beej hee na rah jae)", where the underlined word(s) means "only", a usage that enhances the sense of it but is not actually found in the cover image. Whether that is the publisher's omission or Shailendra's excess is not known. -- doofus-9 01:17, 18 November 2017 (UTC)


TOC from Shailendra's e-book:

अनुक्रम

001/ त्याग- नश्वर का त्याग शाश्वत की प्राप्ति!
002/ मृत्यु है ही नहीं
003/ सत्य को शब्द देना संभव नहीं
004/ अभय-चेतना ही ईश्वरानुभूति
005/ सम्यक-जागरण ही जीवन विजय
006/ मन के छिद्र बंद करो
007/ सपने नहीं, सत्य देखें
008/ ‘मैं’ के भीतर झांको ब्रह्म मिलेगा
009/ मिट्टी के दीयों पर विश्वास छोड़ो और चिन्मय ज्योति खोजो
010/ धार्मिकता भेद से अभेद में छलांग
011/ स्वयं को जानना ही प्रभु को पाना है
012/ शांति के लिए अभ्यास नहीं सद्भाव चाहिए
013/ सत्य लाया नहीं जाता, स्वयं आता है
014/ तुम्हारी निद्रा तोड़ना चाहता हूं
015/ उसे देखो जो सबको देखता है!
016/ स्वयं को जाने बिना ज्ञान की प्यास नहीं मिटती
017/ पूर्ण मौन ही एक मात्र प्रार्थना
018/ जीवन पाने के लिए स्वयं को मिटाना होगा
019/ सागर को पाना नहीं, पीना है
020/ दुख-विस्मरण से दुख नहीं मिटता
021/ दीपक की लौ की भांति ही मनुष्य की चेतना है
022/ संयम और संगीत ही साधना है
023/ जहां विचार नहीं, वहां मन नहीं!
024/ अमूर्त के दर्शन करने हैं, तो मूर्त को अग्नि दो
025/ प्रार्थना
026/ शून्य होना ही एकमात्र पुरुषार्थ है!
027/ प्रेम-मृत्यु ही जीवन है!
028/ जीवन की मृत्यु नहीं और मृत का जीवन नहीं
029/ द्वंद्व में नहीं, द्वंद्व को देखने वाले ‘ज्ञान’ में स्थिर हों!
030/ शून्यता में ही सागर उतर कर पूर्ण करता है!
031/ साधना का साध्य
032/ ‘मैं’ अपरिवर्तनीय है!
033/ आत्मज्ञान ही मोक्ष है
034/ जड़ से हटते ही पौधे सूख जाते हैं!
035/ जगत के रहस्य का ज्ञान ही मुक्ति है
036/ संन्यास लाया नहीं, पाया जाता है
037/ ज्ञान
038/ समाधि
039/ प्रेम और प्रतीक्षा
040/ मन और शांति
041/ जीवन एक बांसुरी
042/ ज्ञान और शील
043/ आनंद और दुख
044/ दिव्य प्यास
045/ प्रकृति ही परमात्मा
046/ ईश्वर हमारा ‘स्व’
047/ स्वयं में डूबो
048/ उधार ज्ञान
049/ शून्य ही हमारा स्वरूप है
050/ मैं का बोध
051/ भागवत-चैतन्य का विज्ञान है--धर्म
052/ चेतना को पहचानो
053/ मृत्यु और जीवन
054/ विजय पथ
055/ भय
056/ शून्य के लिए ही मेरा आमंत्रण
057/ आंखें खोलो, स्वर्ग का राज तुम्हारा है
058/ समयातीत होना आनंद है
059/ समाधि
060/ मनुष्य-मनुष्यता
061/ विवेक, बुद्धि और वृत्ति
062/ मौन का संगीत
063/ स्व-ज्ञान ही जीवन है
064/ धारणा-शून्य मन ही जागृति
065/ मोक्ष की प्रवृत्ति नहीं
066/ सम्यक दर्शन
067/ स्वयं से प्रेम करो
068/ सत्य का स्वरूप
069/ मैं कौन हूं?
070/ विकारों का त्याग
071/ जीने का आनंद
072/ ईश्वर क्या है?
073/ शांति
074/ मनुष्य के साथ क्या हो गया है?
075/ आत्मा कालातीत है
076/ साधुता क्या है?
077/ मन के साक्षी बनो
078/ धूल का परदा
079/ चित्त-वृत्ति निरोध
080/ धर्म अमूर्च्छा है
081/ शून्य-स्मरण
082/ आंख बंद कर तो देखो
083/ ‘पर’ में ‘स्व’ के दर्शन
084/ केवल आनंद ही नित्य है
085/ दृष्टि को भीतर ले चलना है
086/ नास्तिक होना, अधार्मिक होना नहीं!
087/ मुक्ति के लिए स्वयं को खोना होगा
088/ ईश्वर की खोज
089/ पांचवां आर्य सत्य
090/ तीन बातें
091/ ज्ञान, बुद्धि और स्मृति
092/ शरीर-दमन अध्यात्म नहीं है
093/ मोक्ष
094/ पूर्ण होने की इच्छा
095/ योग का सार सूत्र
096/ स्व में होना ही दुख-निरोध है
097/ जहां मृत्यु जीवन है
098/ स्व-अज्ञान मूर्च्छा है
099/ मन आनंदोन्मुखी है
100/ धारणामुक्त ईश्वर
101/ अज्ञात और अदृश्य जड़ें
102/ प्रौढ़ता क्या है?
103/ तथाकथित साधना
104/ ‘फिर मुक्ति क्यों खोजते हो?’
105/ सत्य अखंड है
106/ योग है आत्मस्मरण
107/ कौन हो तुम?
108/ स्वयं के शून्य से भागना अज्ञान है
109/ ‘जीवन का आदर्श क्या है?’
110/ बाधाएं कोई हैं, तो स्वयं में हैं
111/ समाधि सत्य का द्वार है
112/ शरीर-मन एक सराय है
113/ जीवन क्या है?
114/ ‘अहं ब्रह्मास्मि-मैं ही ब्रह्म हूं’
115/ विवाद या संवाद
116/ स्वप्न या द्रष्टा
117/ ‘मैं’ संसार है, ‘मैं’ का अभाव संन्यास है
118/ ‘मूर्तियों को नहीं उस मन को फेंको, जो कि मूर्तियों का निर्माता है’
119/ धर्म क्या है?
120/ सत्य एक है

--DhyanAntar 04:46, 27 September 2018 (UTC)


We say "Letters written from 1960 to 1964", also for all translations. How do we know that?

(CD-ROM says "Letters written from 1966 - 1969", which is clearly wrong, if we have 1965 as publication date of KB.) --Sugit (talk) 12:32, 27 September 2019 (UTC)


First two editions appeared the Krantibeej - one word. On the basis of their title pages they have put to this page, now Krantibeej is one page :-)--DhyanAntar 10:55, 21 December 2019 (UTC)