Shunyata Hai Mahamukti (शून्यता है महामुक्ति)
- ओशो द्वारा सूफी, झेन एवं उपनिषद की कहानियों एवं बोध-कथाओं पर दिए गए सुबोधगम्य 19 अमृत-प्रवचनों की श्रृंखला 'बिन बाती बिन तेल' में से संकलित पांच (11 से 15) प्रवचन जिसके अनुसार झेन फकीर कहते हैं, संन्यासी ऐसा हो जाता है जैसे वृक्ष की छाया। संन्यासी अपने को हटा लेता है दूसरों के मार्ग से। वह शोरकुल नहीं करता। वह किसी को बाधा नहीं देता। वह छाया की भांति हो जाता है। डोलता जरूर है, लेकिन धूल हिलती नहीं। ऐसा- नहीं जैसा हो जाने का नाम संन्यास है। और वहीं कुंजी है संसार के बाहर जाने की। तुम संन्यस्त हुए कि जिनने तुम्हें कारागृह में बांधा है, वे द्वार खोल देंगे। अगर वे द्वार अभी भी बंद किए हैं तो उसका मतलब इतना है कि तुम अभी भी बैठ जागे, जीवन से भरे, इच्छा से भरे बैठे हो।
- notes
- Originally published as ch.11-15 of Bin Bati Bin Tel (बिन बाती बिन तेल).
- time period of Osho's original talks/writings
- (unknown)
- number of discourses/chapters
- 5
editions
Shunyata Hai Mahamukti (शून्यता है महामुक्ति)
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