Bhakti: Jeevan Rupantaran Ki Kala (भक्ति : जीवन रूपांतरण की कला)
- भक्ति कोई शास्त्र नहीं है- यात्रा है। भक्ति कोई सिद्धांत पाया नहीं। भक्ति करे डूब कर भक्ति में डूबकर ही कोई भक्ति के राज को समझ् पाता है। नाच कहीं ज्यादा करीब है विचार से। गीत कहीं ज्यादा करीब है गद्य से। भक्त का अर्थ है- जानना है। भक्त् का अर्थ है जो असहाय होना जानता है। भक्त् का अर्थ है जो अपने ना-कुछ होने को अनुभव करता है।
- notes
- See discussion for a TOC.
- Originally published as ch.17-20 of Bhakti-Sutra (भक्ति-सूत्र).
- time period of Osho's original talks/writings
- (unknown)
- number of discourses/chapters
- 4
editions
Bhakti: Jeevan Rupantaran Ki Kala (भक्ति : जीवन रूपांतरण की कला)(नारद भक्ति सूत्र)
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