Ekmatra Upay: Jago (एकमात्र उपाय : जागो)
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- ओशो द्वारा विभिन्न प्रवचनमालाओं में उपनिषद-सूत्रों, संस्कृत-सुभाषितों एवं वेद व ॠषि वाक्यों पर दिए गए प्रश्नोत्तर प्रवचनांशों के संकलन ‘मेरा स्वर्णिम भारत’ में से संकलित आठ (10 से 17) प्रवचन। जिसके अनुसार जिंदगी वैसे ही उलझी हुई थी, शराब से सुलझ् नहीं जायेगी। गालियां दे दोगे। झगड़े कर लोगे। कुट जाओगे। पिट जाओगे। किसी को पीट दोगे, छुरा मार दोगे- पता नहीं बेहोशी में क्या कर गुजरोगे। इतना तय है कि चिंताएं कम नहीं होंगी, बढ़ जायेंगी। संताप गहन हो जायेगा। पिर और शराब पीना- इसको भुलाने के लिए अब तुम पड़े दुष्ट-चक्र में। एक ही उपाय है-जागो, होश से भरो। अगर दुख है तो उनका भी उपयोग करो। दुख का एक ही उपयोग किया जा सकता है और वह यह है कि साक्षी बनो और जितना साक्षी-भाव बढ़ेगा, उतना दुख क्षीण होता जायेगा। इधर भीतर साक्षी जमा कि रोशनी हुई, दुख कटा अंधेरा कटा।
- notes
- Previously published as ch.10-17 of Mera Swarnim Bharat (मेरा स्वर्णिम भारत).
- time period of Osho's original talks/writings
- (unknown)
- number of discourses/chapters
editions
Ekmatra Upay: Jago (एकमात्र उपाय : जागो)
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Ekmatra Upay: Jago (एकमात्र उपाय : जागो)
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