Jeevan Satya Ki Khoj (जीवन सत्य की खोज): Difference between revisions

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Revision as of 08:58, 26 August 2018


"सत्य की खोज के संबंध में थोड़ी सी बात आपसे कहना चाहूंगा। सत्य की क्या परिभाषा है? आज तक कोई परिभाषा नहीं हो सकी है। भविष्य में भी नहीं हो सकेगी। सत्य को जाना तो जा सकता है, लेकिन कहा नहीं जा सकता। परिभाषाएं शब्दों में होती हैं और सत्य शब्दों में कभी भी नहीं होता। लाओत्से ने आज से कोई तीन हजार वर्ष पहले एक छोटी सी किताब लिखी। उस किताब का नाम है: ताओ तेह किंग। उस किताब की पहली पंक्ति में उसने लिखा है: मैं सत्य कहने के लिए उत्सुक हुआ हूं, लेकिन सत्य नहीं कहा जा सकता है। और जो भी कहा जा सकता है, वह सत्य नहीं होगा। फिर भी मैं लिख रहा हूं, लेकिन जो भी मेरी इस किताब को पढ़े, वह पहले यह बात ध्यान में रख ले कि जो भी लिखा, पढ़ा, कहा जा सकता है, वह सत्य नहीं हो सकता। बहुत अजीब सी बात से यह किताब शुरू होती है। और सत्य की दिशा में लिखी गई किताब हो, और पहली बात यह कहे कि जो भी लिखा जा सकता है वह सत्य नहीं होगा, जो भी कहा जा सकता है वह सत्य नहीं होगा, फिर लिखा क्यों जाए? फिर कहा क्यों जाए? जो हम भी कहेंगे वह अगर सत्य नहीं होना है, तो हम कहें क्यों? लेकिन जिंदगी के रहस्यों में से एक बात यह है कि अगर मैं अपनी अंगुली उठाऊं और कहूं--वह रहा चांद! तो मेरी अंगुली चांद नहीं हो जाती है, लेकिन चांद की तरफ इशारा बन सकती है। अंगुली चांद नहीं है, लेकिन फिर भी चांद की तरफ इशारा बन सकती है। लेकिन कोई अगर मेरी अंगुली पकड़ ले और कहे कि मिल गया चांद, तो भूल हो जाएगी। अंगुली चांद नहीं है, लेकिन चांद की तरफ इशारा बन सकती है, और उनके लिए ही इशारा बन सकती है जो अंगुली को छोड़ दें और चांद को देखें। अंगुली को पकड़ लें, तो अंगुली इशारा न बनेगी, बाधा बन जाएगी। शब्द सत्य नहीं है, न हो सकता है। लेकिन शब्द इशारा बन सकता है। लेकिन उन लोगों के लिए, जो शब्द को पकड़ न लें। जो शब्द को पकड़ लें, उनके लिए शब्द इशारा नहीं बनता, सत्य और स्वयं के बीच दीवाल बन जाता है। और हम सारे लोगों को शब्द दीवाल बन गए हैं; हमने जितने शब्द पकड़ रखे हैं वे सभी दीवाल बन गए हैं। शब्द के पास कुछ भी नहीं है। जो भी मैं कहूंगा, अगर मेरे शब्द ही सुने, तो कुछ भी नहीं पहुंचेगा आप तक। लेकिन अगर शब्द इशारा बन जाएं और उस तरफ आंख उठ जाए जिस तरफ शब्द इंगित करते हैं.। और जिस तरफ शब्द इंगित करते हैं, वह बहुत दूर है। शब्द पृथ्वी के हैं और जिस तरफ इशारा करते हैं वह आकाश में है, फासला बहुत है। शब्द और सत्य के बीच बहुत फासला है।" —ओशो
notes
Three talks, unknown date and location, only available in audio. See discussion for an audio TOC.
time period of Osho's original talks/writings
unknown : timeline
number of discourses/chapters
3


editions