Krishna Smriti (कृष्ण स्मृति): Difference between revisions

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description = सोलह कला संपूर्ण व्यक्तित्व वाले कृष्ण कोई व्यक्ति नहीं, एक संपूर्ण जीवन-दृ‍ष्टि के रूप में हमारे जीवन के कैनवस पर अपने रंग बिखेरते चलते हैं। भारतीय जन-मानस पर कृष्ण की इतनी गहरी छाप ने ओशो को समझने में बहुत बड़ा योगदान दिया है। कृष्ण ने जीवन को उसके सभी आयामों में अंगीकार किया है। संस्कारों में बंधे व्यक्ति के लिए यह इतना आसान नहीं परंतु भले ही अवतार की छवि ‍के रूप में, लेकिन कहीं तो उसका अंतरतम उसे सब स्वीकारने को आंदोलित करता है। उसी साहस को जुटाने के लिए शायद ओशो जैसे रहस्यदर्शी द्वारा इस पुस्तक में की गयी चर्चा सहायक होगी। २६ सितंबर १९७० में नव-संन्यास का सूत्रपात हुआ और २८ सितंबर को ओशो ने इस विषय पर जो प्रवचन दिया वह परिशिष्ट के रूप में इस पुस्तक में जोड़ा गया है जिसमें नव-संन्यास को लेकर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर हैं।
description = सोलह कला संपूर्ण व्यक्तित्व वाले कृष्ण कोई व्यक्ति नहीं, एक संपूर्ण जीवन-दृ‍ष्टि के रूप में हमारे जीवन के कैनवस पर अपने रंग बिखेरते चलते हैं। भारतीय जन-मानस पर कृष्ण की इतनी गहरी छाप ने ओशो को समझने में बहुत बड़ा योगदान दिया है। कृष्ण ने जीवन को उसके सभी आयामों में अंगीकार किया है। संस्कारों में बंधे व्यक्ति के लिए यह इतना आसान नहीं परंतु भले ही अवतार की छवि ‍के रूप में, लेकिन कहीं तो उसका अंतरतम उसे सब स्वीकारने को आंदोलित करता है। उसी साहस को जुटाने के लिए शायद ओशो जैसे रहस्यदर्शी द्वारा इस पुस्तक में की गयी चर्चा सहायक होगी। २६ सितंबर १९७० में नव-संन्यास का सूत्रपात हुआ और २८ सितंबर को ओशो ने इस विषय पर जो प्रवचन दिया वह परिशिष्ट के रूप में इस पुस्तक में जोड़ा गया है जिसमें नव-संन्यास को लेकर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर हैं।

Revision as of 13:01, 10 December 2020


सोलह कला संपूर्ण व्यक्तित्व वाले कृष्ण कोई व्यक्ति नहीं, एक संपूर्ण जीवन-दृ‍ष्टि के रूप में हमारे जीवन के कैनवस पर अपने रंग बिखेरते चलते हैं। भारतीय जन-मानस पर कृष्ण की इतनी गहरी छाप ने ओशो को समझने में बहुत बड़ा योगदान दिया है। कृष्ण ने जीवन को उसके सभी आयामों में अंगीकार किया है। संस्कारों में बंधे व्यक्ति के लिए यह इतना आसान नहीं परंतु भले ही अवतार की छवि ‍के रूप में, लेकिन कहीं तो उसका अंतरतम उसे सब स्वीकारने को आंदोलित करता है। उसी साहस को जुटाने के लिए शायद ओशो जैसे रहस्यदर्शी द्वारा इस पुस्तक में की गयी चर्चा सहायक होगी। २६ सितंबर १९७० में नव-संन्यास का सूत्रपात हुआ और २८ सितंबर को ओशो ने इस विषय पर जो प्रवचन दिया वह परिशिष्ट के रूप में इस पुस्तक में जोड़ा गया है जिसमें नव-संन्यास को लेकर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर हैं।
notes
Previously published as Krishna: Meri Drishti Mein (कृष्ण : मेरी दृष्टि में).
Discourses from Bombay: July 20, 1970 and Kullu (Manali): September 26 - October 5, 1970. Manali talks are those given at a Meditation Camp to the first group Osho "officially" initiated into sannyas, image at right, click for details.
Translated into English as Krishna: The Man and His Philosophy.
Later published as five separate books by Diamond Books:
time period of Osho's original talks/writings
Jul 20, 1970 to Oct 5, 1970 : timeline
number of discourses/chapters
21


editions

Krishna Smriti (कृष्ण स्मृति)

Year of publication : 1989~1996
Publisher :
ISBN
Number of pages :
Hardcover / Paperback / Ebook :
Edition notes : Sources: list of books from Hari Om Tatsat (हरि ॐ तत्सत्) (1989.03 ed.: as "upcoming publication"), and from Osho Diary 1997 (the image.

Krishna Smriti (कृष्ण स्मृति)

Year of publication : 2001
Publisher : Rebel Publishing House, India
ISBN 978-81-726-1023-4 (click ISBN to buy online)
Number of pages : 516
Hardcover / Paperback / Ebook : H
Edition notes :

Krishna Smriti (कृष्ण स्मृति)

Year of publication : 2011
Publisher : Osho Media International
ISBN 978-81-726-1023-4 (click ISBN to buy online)
Number of pages : 516
Hardcover / Paperback / Ebook : H
Edition notes :

Krishna Smriti (कृष्ण स्मृति)

Year of publication : 2018
Publisher : Osho Media International
ISBN 978-0-88050-828-5 (click ISBN to buy online)
Number of pages :
Hardcover / Paperback / Ebook : E
Edition notes :