Letter written to Shobhana (Ma Yoga Shobhana) on 17 Aug 1968. It has been published in Dhai Aakhar Prem Ka (ढ़ाई आखर प्रेम का) as letter 20 and also in Wah Pati Ab! Wah Kahan! (वह पाती अब! वह कहाँ!) (p.66).
acharya rajneesh
kamala nehru nagar : jabalpur (m. p.). phone : 2957
१७/८/१९६८
प्यारी शोभना,
प्रेम।
'मैं' ही है किनारा--वही है बंधन--वही है बाधा अनंत और स्वयं के बीच।
दुख भी वही है और दुख का कारण भी।
और प्रत्येक निर्णय से वह मजबूत होता है।
उसे मिटाने के निर्णय से भी!
वस्तुत: जीवन के समस्त निर्णयों को जोड़ ही तो वह है।
उसे मिटाने -- उससे मुक्त होने में यही तो कठिनाई है। संकल्प (Will) से वह नहीं मिट सकता है।
इसलिए, सिर्फ समझ उसे।
समझ कि वह क्या है?
पूछ : मैं कौन हूँ?
पूछ : मैं क्या हूँ?
पूछ : मैं कहां हूँ?
उत्तर?
उत्तर नहीं है।
'मैं' है ही नहीं--तो उत्तर कैसा?
किंतु, अनुत्तर मौन ही क्या उत्तर नहीं है?
शून्य है उत्तर।
उस शून्य में बस वही है जो है।
फिर शोभना नहीं है--तट नहीं है--बस सागर है।
सागर और सागर और सागर।
और क्या तू सुन नहीं रही है कि सागर तुझे बुला रहा है।
आ। आ। आ।
रजनीश के प्रणाम
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- Dhai Aakhar Prem Ka ~ 020 - The event of this letter.