प्यारी नीलम,
प्रेम। जानकर खुश हूँ कि अभिनय के प्रयोग से तेरी शांति बढ़ी है।
जीवन एक अभिनय से ज्यादा नहीं है, इसे चेतना में जितना गहरा उतार सके उतना ही मंगलदायी है।
उठते-बैठते, सोते- जागते इस महासूत्र को स्मरण रख : "जीवन एक अभिनय है।"
श्वांस-प्रश्वांस में इसे पिरो ले।
तेरे लिए फिलहाल यही ध्यान है।
शांति इतनी हो जाये कि उसका पता भी न चले।
वस्तुत: पता तो अशांति का ही चलता है न?
शांति की गहनता से सत्य में छलांग अति आसान है।
'संसार स्वप्न है', इस प्रतीति से, 'प्रभु सत्य है', इस अनुभूति में उतर जाना कठिन नहीं है।
तू शांति को संभाल ले फिर तो तुझे मैं सत्य में धक्का दे ही दूंगा!