Letter written on 20 Feb 1971 (KSaraswati): Difference between revisions

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:[[Pad Ghunghru Bandh ~ 086]] - The event of this letter.
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Revision as of 18:24, 31 December 2020

Letter written to Sw Krishna Saraswati on 20 Feb 1971. It has been publishe in Pad Ghunghru Bandh (पद घुंघरू बांध) as letter 86.

Acharya Rajneesh

kamala nehru nagar : jabalpur (m.p.). phone: 2957

प्रिय कृष्ण सरस्वती,
प्रेम। एक सूफी दरवेश ने किसी व्दार पर भिक्षा के लिए प्रार्थना की।

गृहपति ने उसकी ओर देखे बिना ही कहाः "क्षमा करें -- किंतु घर में कोई है नहीं ।"

फकीर हंसा और बोलाः " लेकिन, मैं किसी को कहां मांगता हूँ -- मैं तो सिर्फ भोजन ही मांगता हूँ ! "

इस बार गृहपति ने चौंककर फकीर की ओर देखा।

लेकिन फिर भी कहाः " मैं समझा -- पर भोजन देने के लिए ही तो कोई आदमी घर में नहीं है ?"

फकीर पुनः हंसा और बोलाः " महानुभाव ! आदमी घर में नहीं है?--फिर आप कौन है ?--आदमी नहीं ?

गृहपति उठा और भोजन लेकर आया।

पर फकीर ने भोजन लेने से इंकार कर दिया और कहाः " मैं भलीभांति समझ गया था कि भोजन आपको नहीं देना है पर यही बात में आपसे सीधी-सीधी सुनना चाहता था ! "

आदमी ऐसा ही जीता है -- तिरछा-तिरछा।

जो कहता है -- वही नहीं कहता यद्मपि उसे ही और और तरह से कहना चाहता है।

जो करना है -- वही नहीं करता यद्मपि उसे ही पीछे के मार्गों से करना पड़ता है।

जो होता है -- वही नहीं होता है यद्मपि उसके अतिरिक्त और कुछ हो नहीं सकता है।

रजनीश के प्रणाम

२०/२/१९७१


See also
Pad Ghunghru Bandh ~ 086 - The event of this letter.
translation on Osho News