Letter written on 22 Jan 1969: Difference between revisions

From The Sannyas Wiki
Jump to navigation Jump to search
No edit summary
No edit summary
 
Line 1: Line 1:
Letter written to Pratap J. Toliya on 22 Jan 1969. It is unknown if it has been published or not.
Letter written to [[Pratap J. Toliya]] on 22 Jan 1969. It is unknown if it has been published or not.


[[Sw Satya Anuragi]] kindly shared this and other 17 letters to Pratap.
[[Sw Satya Anuragi]] kindly shared this and other 17 letters to Pratap.

Latest revision as of 09:21, 8 October 2023

Letter written to Pratap J. Toliya on 22 Jan 1969. It is unknown if it has been published or not.

Sw Satya Anuragi kindly shared this and other 17 letters to Pratap.


acharya rajneesh

kamala nehru nagar : jabalpur (m. p.) phone : 2957

मेरे प्रिय,
प्रेम। मैं प्रवास में था। लौटा हूं तो तुम्हारा प्यारा पत्र मिला है। विरोध में भी कैसी जीवन्तता है! आह! प्रेम में भी ऐसा बल नहीं होता है!

तुम्हारे पत्र का खूब आनंद लिया है। बहुत नमकीन है!

तुमने जो कार्य शुरू किया है, वह शुभ है और उसे जारी रखो।

मैं तो विचारणा (Thinking) ही पैदा करना चाहता हूं।

मैं भी उसमें विषय (Object) बनूं तो अच्छा है।

रह गये मेरे आचरण के संबंध में प्रश्न : तो आचरण के संबंध में उत्तर सदा आचरण ही देता है।

मैं उत्तर देने वाला कौन हूं?

समय और आचरण ही उत्तर देगा।

इसलिए थोड़ा धैर्य रखना पड़ेगा।

और न भी रख सको तो हर्ज नहीं है।

अधैर्य भी परिणाम लाता है।

मुझे विचारणीय बता सको तो बहुत बड़ी बात है।

श्री. मनुभाई शाह का वक्तव्य भी आज देखा। वह भी सुन्दर है। आज से उसकी गणना भी मित्रों में कर सकता हूं। वैसे आशा तो उनसे सदा से थी। जब से मिले तब से ही लगता था कि वे भी मेरे लिए ज़रूर कुछ करेंगे। और आशायें जब फलती हैं तो कितना आनंद होता है।

वंहा सबको मेरे प्रणाम कहना।

धैर्य और शांति से जो काम हाथ में उठाया है, उसे पूरा करना। पुराने मित्र बुरा-भला भी कहें तो चिंता मत करना। मैं तो सदा साथ हूं।

रजनीश के प्रणाम

२२/१/१९६९

पुनश्च: तुम्हारी पुस्तिका तो अभी तक नहीं मिली है। उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहा हूँ।

और हाँ! तुम्हारी भेंट दी हुई पुस्तक वापिस नहीं भेज सकूँगा। पुराने प्रताप की याद में उसका मेरे पास होना ही उचित है। भेंटें तो तुम और भी दोगे। लेकिन वे तो नये प्रताप की होंगी न? देखो -- नये को इतना प्रेम करने वाले मुझ जैसे का भी पुराने से इतना मोह है। किसी लेख में इस तथ्य का भी तुम उपयोग कर सकते हो। और तुम जो भी लिखना चाहो निसंकोच लिखो। यह तो भूल कर भी मत सोचना कि मैं नाराज़ होऊँगा। मैं नाराज़ हो ही नहीं पाता हूँ। वह भी मेरी बहुत सी कमजोरियों में से एक है। और यह भी ध्यान में मत रखना कि मैं कभी पूछुंगा कि यह या वह तुमने क्यों लिखा -- मैंने लिखा -- प्रमाण कहां है -- नहीं, बिल्कुल नहीं

Editor: end incomplete?

See also
Letters to Pratap ~ 16 - The event of this letter.