Letter written on 23 Dec 1968 (Jyoti): Difference between revisions

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The letter is dated 23rd December 1968 and addressed to [[Ma Dharm Jyoti]], then known as Pushpa. Published in ''[[Dhai Aakhar Prem Ka (ढ़ाई आखर प्रेम का)]]'' as ch.25.  
The letter is dated 23rd December 1968 and addressed to [[Ma Dharm Jyoti]], then known as Pushpa. Published in ''[[Dhai Aakhar Prem Ka (ढ़ाई आखर प्रेम का)]]'' as ch.25.  
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acharya rajneesh
kamala nehru nagar : jabalpur (m.p.). phone : 2957
प्यारी पुष्पा,<br>
प्रेम। तेरा पत्र मिला है ।
सलु के लिए मैं भी चिंतित हूँ।
स्त्रियों की स्थिति साधारणतः अच्छी नहीं है।
पुरुषों का शोषक व्यवहार तो जिम्मेदार है ही। लेकिन स्त्रियां भी उतनी ही दोषी हैं।
वे शोषण होने देती हैं।
उनमे विद्रोह चाहिए।
विद्रोह की चिन्गारी जबतक उनमें नहीं है, तबतक उनका व्यक्तित्व -- उनकी आत्मा ठीक से प्रगट नहीं होसकती है।
यह विद्रोह भी प्रेमपूर्ण होसकता है।
सच तो यह है कि जहां विद्रोही आत्मा नहीं है -- स्वतंत्र व्यक्तित्व नहीं है, वहां प्रेम की संभावना भी क्या है ?
तथाकथित दाम्पत्य स्थायी वेश्यागिरी होगया है।
स्त्रियों को वेश्या बनने से इंकार करना है।
सुरक्षा का अति आग्रह यह नहीं होने देता है।
मैं जब आऊँगा, तब बात करूंगा।
स्त्रियों को संगठित कर तो बहुत बातें की जासकती हैं।
सलु को मेरा प्रेम।
उससे कहना : पत्र लिखे। कैसी भी -- टूटी -- फूटी भाषा में ही सही।
रजनीश के प्रणाम
२३/१२/१९६८
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Revision as of 07:53, 12 March 2020

Letterhead reads:

acharya rajneesh
kamala nehru nagar
jabalapur (m.p.)
phone: 2957

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The letter is dated 23rd December 1968 and addressed to Ma Dharm Jyoti, then known as Pushpa. Published in Dhai Aakhar Prem Ka (ढ़ाई आखर प्रेम का) as ch.25.

acharya rajneesh

kamala nehru nagar : jabalpur (m.p.). phone : 2957

प्यारी पुष्पा,
प्रेम। तेरा पत्र मिला है ।

सलु के लिए मैं भी चिंतित हूँ।

स्त्रियों की स्थिति साधारणतः अच्छी नहीं है।

पुरुषों का शोषक व्यवहार तो जिम्मेदार है ही। लेकिन स्त्रियां भी उतनी ही दोषी हैं।

वे शोषण होने देती हैं।

उनमे विद्रोह चाहिए।

विद्रोह की चिन्गारी जबतक उनमें नहीं है, तबतक उनका व्यक्तित्व -- उनकी आत्मा ठीक से प्रगट नहीं होसकती है।

यह विद्रोह भी प्रेमपूर्ण होसकता है।

सच तो यह है कि जहां विद्रोही आत्मा नहीं है -- स्वतंत्र व्यक्तित्व नहीं है, वहां प्रेम की संभावना भी क्या है ?

तथाकथित दाम्पत्य स्थायी वेश्यागिरी होगया है।

स्त्रियों को वेश्या बनने से इंकार करना है।

सुरक्षा का अति आग्रह यह नहीं होने देता है।

मैं जब आऊँगा, तब बात करूंगा।

स्त्रियों को संगठित कर तो बहुत बातें की जासकती हैं।

सलु को मेरा प्रेम।

उससे कहना : पत्र लिखे। कैसी भी -- टूटी -- फूटी भाषा में ही सही।

रजनीश के प्रणाम

२३/१२/१९६८


See also
Dhai Aakhar Prem Ka ~ 025 - The event of this letter.