Revision as of 13:51, 17 October 2023 by Dhyanantar(talk | contribs)(Created page with "Letter written to Mr Badri Soni, Raj Nagar, Rajasthan on 3 Feb 1965. It is unknown if it has been published or not. Sw Satya Anuragi kindly shared this letter. {| class = "wikitable" style="margin-left: 50px; margin-right: 100px;" |- |right|300px Acharya Rajnish प्रिय बद्री,<br> स्नेह. तुम्हारा पत्र मिला है. बहुत खुशी हुई. प्रभु नि...")
प्रिय बद्री,
स्नेह. तुम्हारा पत्र मिला है. बहुत खुशी हुई. प्रभु निरंतर आगे बढाता रहे, यही कामना है.
श्रम कभी भी व्यर्थ नहीं जाता है. सत्य की दिशा में उठे चरण सदा ही सार्थकता तक पहुंच जाते हैं.
जीवन विकास है, और, इसलिये जो सतत् आत्मसृजन में लगा रहता वही ठीक अथों में जीवित कहा जासकता है.
स्वयं को निर्मित कर लेना ही सफलता है.
मनुष्य केवल बीज है. वह कुछ होने की संभावना है. श्रम और संकल्प से वह बीज वास्तविकता बन सकता है.
अपने संकल्प को इकट्ठा करो, और प्रभु को लज्ञ्य बनाओ. उससे नीचे कुछ भी पाने योग्य नहीं हैं. वही विंदु है, जिसे बेध ना है. चेतना का तीर जिस ज्ञन उस लज्ञ्य को बेध देता है, उसी ज्ञन पुरुषार्थ पूरा होता है, और धन्यता उपलब्ध होती है.
वहां सबको मेरा प्रेम कहो. श्री०मार्तन्डजी को भी मेरा स्मरन दिलाना.