Letter written on 5 April 1965 am

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Osho wrote many letters in Hindi to Sw Anand Maitreya which were published in various letter collections. This one is dated 5th April 1965 and was published in Antarveena (अंतर्वीणा) as letter #7, though some material about upcoming events from 7-10 May was edited out. It is written in a blue ink.

There is no letterhead for this letter but the paper is an unusual square shape, so it is possible that the original letterhead may have been torn off.

प्रभातः
५ अप्रैल १९६५

मेरे प्रिय,
आपका पत्र मिला है। उसे पाकर आनंदित हुआ हूँ। उस दिन भी मिलकर अपार हर्ष हुआ था। सत्य के लिए जैसी आपकी आकांक्षा और प्यास है,वह सौभाग्य से ही होती है। वह हो तो एक न एक दिन साधना के सागर में कूदना भी हो ही जाता है।

मैं आपको तट पर खड़ा पा रहा हूँ -- बस, एक छलांग की ही आवश्यकता है।

*

साधना को जितना सहज बनाया जासके -- वह जितनी 'प्रयत्न के तनाव से शून्य ' हो, उतनी ही शीघ्रता से उसमें गति होती है। अभ्यास तो होगा ही,लेकिन वह अभ्यास तनाव और व्यस्तता नहीं बनना चाहिए, इस भाव को ही मैंने 'अनभ्यास के व्दारा अभ्यास ' कहा है। सत्य को पाने में जो अधैर्य और अशांति होती है, उसे ही तनाव -- प्रयत्न का तनाव समझना चाहिए। अनंत धैर्य और शांति और प्रतीक्षा हो तो अभ्यास का तनाव विलीन होजाता है, फिर जैसे वृक्षों में फूल सहज ही खिलते हैं, वैसे ही साधना में अनायास और अतिरीक्षित ही क्रमशः गति होती जाती है।

*

उदयपुर साधना शिविर ७, ८, ९ और १० मई को आयोजित हो रहा है। आप उसमें अयश्य आ आजावें। शिविर की विस्तृत जानकारी के लिए -- श्री० हीरालाल कोठारी,
बांसडावाली पोल,
उदयपुर.---से पूछताछ करले।

वहां सभी को मेरा प्रेम कहें।

रजनीश के प्रणाम


See also
Antarveena ~ 007 - The event of this letter.