Letter written on 6 Jun 1962: Difference between revisions

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Revision as of 04:29, 9 August 2021

This is one of hundreds of letters Osho wrote to Ma Anandmayee, then known as Madan Kunwar Parakh. It was written on 6 Jun 1962 from Jabalpur.

This letter has been published, in Bhavna Ke Bhojpatron Par Osho (भावना के भोजपत्रों पर ओशो) on p 131-132 (2002 Diamond edition). PS is missing in the book.

The PS of this letter reads: "Received you letter - felt after so many ages! The invitation is also received from Shree Parakh Ji. But ask my forgiveness from him on my behalf. Have been out, whole of May - heat has not done good spell on the health - that's why planning of staying here itself in June. Feeling that only this would be beneficial for the health. Rest, OK. My humble pranam to all."

रजनीश

११५, नेपियर टाउन
जबलपुर (म.प्र.)

६ जून १९६२

मां,
रात्रि काफी सरक गई है।

एक परिवार से लौटा हूँ। जो वहां देखा, उससे दुख होता है। व्यक्ति कैसा विषाक्त होगया है? उसकी आत्मा कैसी टेढ़ी मेढ़ी होती जाती है। सब क्या कुरूप होकर ही रहेगा? उपर से सब ठीक दीखता है पर भीतर से सड़ गया है। जीवन की आधारभूत भूमि जैसे पैरों के नीचे से हट गई है।

वह खोता जाता है जो कि जोड़ता था। प्रेम की जगह बीच में खाइयां हैं। देश करीब आगये हैं। भौतिक निकटता बढ़ गई है पर मनुष्य दूर होते जाते हैं : हृदयों के बीच में अलंघ्य दूरियां फैलती जाती हैं।

व्यक्ति टूट गया है इससे समस्त समष्टि टूटी जारही है। व्यक्ति ही बृहत्‌ होकर समष्टि है : समष्टि अपने में कहीं नहीं है। उस की कोई स्व-सत्ता नहीं है। वह तो व्यक्ति-व्यक्ति के बीच का ही सम्बंध है।

यह सम्बंध मधुर हो तो जीवन आनंद होजाता है : यह सम्बंध विषाक्त हो तो जीवन नरक होजाता है।

यह सम्बंध उपर से नहीं थोपा जासकता है। यह तो अंतर की शांति और आनंद से उपजता है। व्यक्ति में शान्ति का केन्द्र बनता है तो उसके सम्बंधों में प्रीति और शांति आती है।

यह शांति-केन्द्र व्यक्ति के विराट के प्रति उन्मुख होने से जन्मता है। व्यक्ति जैसे ही अ-व्यक्ति, अनंत चेतना से अपने को खोलता है – उसका नया जन्म होजाता है। अहं-केन्द्रित से वह ब्रह्म-केन्द्रित होजाता है। अहं-केन्द्रित होना दुख है, पीड़ा है, मृत्यु है। अहं-केन्द्रित होना ही विषाक्त होना है। इस विष ने ही आज युग को पकड़ लिया है। ब्रह्म-केन्द्रित होना शांति है, आनंद है, जीवन है। उसके घटित होते ही सब बदल जाता है।

ब्रह्म-केन्द्रित होने का रहस्य भूल गया है : इसलिए सब व्यवस्था करके भी कुछ व्यवस्थित नहीं होरहा है। अराजकता है क्योंकि अहं केन्द्र है।

यह अहं-केन्द्रित जीवन दृष्टि नहीं बदलती है तो अब मनुष्य को और उसके समाज को नहीं बचाया जासकता है।

रजनीश के प्रणाम

पुनश्च: आपका पत्र मिला। लगा कितने युगों के बाद! श्री पारख जी का भी आमंत्रण आया है। पर उनसे मेरी ओर से क्षमा मांगलें। पूरे मई बाहर रहा हूँ : गर्मी ने स्वास्थ्य पर अच्छा असर नहीं किया है इससे जून यहीं रहने का विचार है। सोचता हूँ स्वास्थ्य के लिए यही हितकर है। शेष शुभ। सबको मेरे विनम्र प्रणाम।


See also
Bhavna Ke Bhojpatron ~ 062 - The event of this letter.
Letters to Anandmayee - Overview page of these letters.