Letter written on 7 Feb 1962

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This is one of hundreds of letters Osho wrote to Ma Anandmayee, then known as Madan Kunwar Parakh. It was written on 7 Feb 1962.

This letter has been published, in Krantibeej (क्रांतिबीज) as letter 58 (edited and trimmed text) and later in Bhavna Ke Bhojpatron Par Osho (भावना के भोजपत्रों पर ओशो) on p 95 (2002 Diamond edition).

रजनीश

११५, नेपियर टाउन
जबलपुर (म.प्र.)

प्रिय मां,
कल दोपहर एक पहाड़ी के अंचल में थे। धूप-छाया के विस्तार में बड़ी सुखद घड़ियां बीतीं। निकट ही था एक तालाब और हवा के तेज थपेड़ों ने उसे बेचैन कर रखा था। लहरें उठतीं, गिरतीं और टूटतीं। उसका सब कुछ विक्षुब्ध था।

फिर हवायें सोगईं और तालाब भी सोगया।

मैंने कहाः “देखो। जो बेचैन होता है वह शांत भी होसकता है : बेचैनी अपने में शांति को छिपाये हुए है। तालाब अब शांत है : तब भी शांत था। लहरें ऊपर ही थीं : भीतर पहले भी शांति थी।“

मनुष्य भी ऊपर ही अशांत है। लहरें ऊपर ही हैं : भीतर गहराई में घना मौन है। विचारों की हवाओं से दूर चलें और शांत सरोवर के दर्शन शुरू होजाते हैं। यह सरोवर अभी और यहीं पाया जासकता है। समय का प्रश्न ही नहीं है क्योंकि समय वहीं तक है जहां तक विचार हैं। ध्यान समय के बाहर है। ईसा ने कहा है : “और वहां समय नहीं है।“

समय में दुख है। समय दुख है। समयातीत होना आनंद में होना है। समयातीत होना आनंद होना है।

चलो मित्र! समय के बाहर चलें – वहीं हम हैं। समय के भीतर जो दीखता है वह समय के बाहर ही है। इतना जानना ही चलना है। जाना कि हवायें रुक जाती हैं और सरोवर शांत होजाता है।

७ फर. १९६२

रजनीश के प्रणाम


See also
Krantibeej ~ 058 - The event of this letter.
Letters to Anandmayee - Overview page of these letters.