Sahaj Asiki Nahin (सहज आसिकी नाहिं)
- प्रेम ही जीवन है, प्रेम ही मंदिर है, प्रेम ही पूजा है, इस सत्य का उदघाटन ओशो ने संत पलटू के वचनों पर बोलते हुए किया है। प्रेम के स्वरूप को समझाते हुए ओशो कहते हैं : ‘‘मैं तो चाहूंगा कि अब प्रेम के मंदिर हों। प्रेम की एक खूबी है कि प्रेम न तो हिंदू होता न मुसलमान होता, न ईसाई होता न जैन होता; न हिंदुस्तानी, न पाकिस्तानी, न अफगानिस्तानी। प्रेम तो बस प्रेम है। प्रेम तो बहुत विराट है, सभी को आत्मसात कर लेता है।’’
- notes
- See discussion for TOC and some consideration of edition excess.
- time period of Osho's original talks/writings
- from Dec 1, 1980 to Dec 10, 1980 : timeline
- number of discourses/chapters
- 10
editions
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