Shiksha: Nae Prayog (शिक्षा : नए प्रयोग)
- ओशो कहते हैं कि चित्त को इतना बोझिल, जटिल और बूढ़ा कर दे कि उसका जीवन से सीधा संपर्क छिन्न-भिन्न हो जाए तो यह शुभ नहीं है। बोझिल और बूढ़ा चित्त जीवन के ज्ञान, आनंद और सौंदर्य सभी से वंचित रह जाता है। ज्ञान, आनंद और सौंदर्य की अनुभूति के िलए तो युवा चित्त चाहिए। शरीर तो बूढ़ा होने को आबद्ध है लेकिन चित्त नही। चित्त तो सदा युवा रह सकता है। मृत्यु के अंतिम क्षण तक चित्त युवा रह सकता है, और ऐसा चित्त ही जीवन और मृत्यु के रहस्यों को जान पाता है। ऐसा चित्त ही धार्मिक चित्त है। शिक्षा के क्षे7 में ओशो के नए प्रयोगो को जानिए।
- notes
- time period of Osho's original talks/writings
- (unknown)
- number of discourses/chapters
- 8
editions
Shiksha: Nae Prayog (शिक्षा : नए प्रयोग)
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