Talk:Patanjali Yog-Sutra, Bhag 1 (पतंजलि योग-सूत्र, भाग एक): Difference between revisions
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TOC: | |||
:1. योग के प्रवेश द्वार पर | |||
:2. शिष्यत्व और सदगुरु की खोज | |||
:3. मन की पांच वृत्तियां | |||
:4. मन के पार है बोध | |||
:5. सम्यक ज्ञान, असम्यक ज्ञान और मन | |||
:6. योग-विज्ञान की शुचिता | |||
:7. वैराग्य और निष्ठापूर्ण अभ्यास | |||
:8. दुख की संरचना का बोध | |||
:9. स्वयं में प्रतिष्ठित हो जाओ | |||
:10. साक्षी और वैराग्य- प्रारंभ भी, अंत भी | |||
:11. समाधि का अर्थ | |||
:12. अहंकार को दुःसाध्य का आकर्षण | |||
:13. समग्र संकल्प या समग्र समर्पण | |||
:14. बीज ही फूल है | |||
:15. गुरुओं का गुरु | |||
:16. मैं एक नूतन पथ का प्रारंभ हूं | |||
:17. ध्यान की बाधाएं | |||
:18. ओम के साथ विसंगीत से संगीत तक | |||
:19. समुचित मनोवृत्तियों का संवर्धन | |||
:20. प्रथम ही अंतिम है |
Revision as of 20:19, 14 June 2018
Rebel ISBN 81-7261-065-1 salvaged from predecessor page turns out to be not even a valid ISBN. Good luck with that one. -- Sarlo (talk) 15:16, 27 May 2014 (PDT)
TOC:
- 1. योग के प्रवेश द्वार पर
- 2. शिष्यत्व और सदगुरु की खोज
- 3. मन की पांच वृत्तियां
- 4. मन के पार है बोध
- 5. सम्यक ज्ञान, असम्यक ज्ञान और मन
- 6. योग-विज्ञान की शुचिता
- 7. वैराग्य और निष्ठापूर्ण अभ्यास
- 8. दुख की संरचना का बोध
- 9. स्वयं में प्रतिष्ठित हो जाओ
- 10. साक्षी और वैराग्य- प्रारंभ भी, अंत भी
- 11. समाधि का अर्थ
- 12. अहंकार को दुःसाध्य का आकर्षण
- 13. समग्र संकल्प या समग्र समर्पण
- 14. बीज ही फूल है
- 15. गुरुओं का गुरु
- 16. मैं एक नूतन पथ का प्रारंभ हूं
- 17. ध्यान की बाधाएं
- 18. ओम के साथ विसंगीत से संगीत तक
- 19. समुचित मनोवृत्तियों का संवर्धन
- 20. प्रथम ही अंतिम है