Tum Aaj Mere Sang Sans Lo (तुम आज मेरे संग हँस लो)

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इस प्राकृतिक जगत में सब कुछ हंस रहा है। चांद तारे हंस रहे हैं। सूरज की किरणें नाच रही हैं, पवन नृत्य कर रहा है। बादल मल्हार गा रहे हैं। मयूर थिरक रहे हैं। कोयल पंचम सुर में गा रही है। भौंरे गुनगुना रहे हैं। चिड़ियां चहचहा रही हैं। फूल खिलखिला रहे हैं। जिधर नज़र डालो उधर आनन्द उत्सव चल रहा है। किन्तु आश्चर्य है कि इस प्रकृति का सर्वश्रेष्ठ जीव- मनुष्य सर्वाधिक उदास है। न उसके ओठों पर हंसी है और न ही उसके पैरों में थिरकन। क्या हो गया है आदमी को?
भगवान कृष्ण नाचते हुए धर्म के प्रतीक थे। उनका जीवन आनन्द और उत्सव से भरा था। लगभग पांच हजार वर्ष बाद ओशो ने पुनः धर्म को हास्य, नृत्य और संगीत से ओतप्रोत कर दिया। वे कहते हैं- ‘मैं एक जागते हुए, जीते हुए, हंसते हुए, नाचते धर्म को पृथ्वी पर फैलता हुआ देखना चाहता हूं। ऐसा धर्म जो जीवन को अंगीकार करे, आलिंगन करे। जो जीवन के प्रति परमात्मा का अनुग्रह प्रकट करे। जो जीवन का त्यागी न हो। जो जीवन का निषेध न करता हो। जिसमें जीवन के प्रति अहोभाव हो। जो यह जीवन पाकर अपने को धन्यभागी समझे।’
ओशो के सभी आश्रमों और सभी कार्यक्रमों में ओशो की यह देशना प्रेरणा का कार्य करती है।
author
Sw Shailendra Saraswati
language
Hindi
notes

editions

तुम आज मेरे संग हँस लो

Year of publication : Feb 2021
Publisher :
Edition no. :
ISBN
Number of pages : 130
Hardcover / Paperback / Ebook : E
Edition notes :