Jharat Dasahun Dis Moti (झरत दसहुं दिस मोती): Difference between revisions
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description = जीवन को सम्मान दो, सत्कार करो। जीवन उसकी भेंट है और तुम पात्र न थे तो भी तुम्हें मिली है। तुम अपात्र हो, फिर भी वह तुम पर बरसा है-झत दसहुं दिस मोती- उसके मोती बरसे ही जाते हैं। तुमने नहीं मांगा, वह तुम्हें मिला है। तुम जो नही जानते, वह भी तुम्हें मिला है। जिसे पहचानने में तुम्हें सदियां लग जाएंगी, वह भी तुम्हें मिला है। ऐसा खजाना, जो अकूत है। और ऐसी गहराई, जो अथाह है। और ऐसा जीवन जो अज्ञेय है। रहस्यों को रहस्य तुम्हारे हृदय में समाया हुआ है,| | description = जीवन को सम्मान दो, सत्कार करो। जीवन उसकी भेंट है और तुम पात्र न थे तो भी तुम्हें मिली है। तुम अपात्र हो, फिर भी वह तुम पर बरसा है-झत दसहुं दिस मोती- उसके मोती बरसे ही जाते हैं। तुमने नहीं मांगा, वह तुम्हें मिला है। तुम जो नही जानते, वह भी तुम्हें मिला है। जिसे पहचानने में तुम्हें सदियां लग जाएंगी, वह भी तुम्हें मिला है। ऐसा खजाना, जो अकूत है। और ऐसी गहराई, जो अथाह है। और ऐसा जीवन जो अज्ञेय है। रहस्यों को रहस्य तुम्हारे हृदय में समाया हुआ है,| | ||
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notes = | notes = Osho answers seekers' questions in Pune. See [[Talk:Jharat Dasahun Dis Moti (झरत दशहुं दिश मोती)|discussion]] for a TOC and a consideration of the nominal theme of the book.| | ||
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Revision as of 05:33, 26 January 2015
- जीवन को सम्मान दो, सत्कार करो। जीवन उसकी भेंट है और तुम पात्र न थे तो भी तुम्हें मिली है। तुम अपात्र हो, फिर भी वह तुम पर बरसा है-झत दसहुं दिस मोती- उसके मोती बरसे ही जाते हैं। तुमने नहीं मांगा, वह तुम्हें मिला है। तुम जो नही जानते, वह भी तुम्हें मिला है। जिसे पहचानने में तुम्हें सदियां लग जाएंगी, वह भी तुम्हें मिला है। ऐसा खजाना, जो अकूत है। और ऐसी गहराई, जो अथाह है। और ऐसा जीवन जो अज्ञेय है। रहस्यों को रहस्य तुम्हारे हृदय में समाया हुआ है,
- notes
- Osho answers seekers' questions in Pune. See discussion for a TOC and a consideration of the nominal theme of the book.
- time period of Osho's original talks/writings
- Jan 21, 1980 to Feb 10, 1980 : timeline
- number of discourses/chapters
- 21
editions
Jharat Dasahun Dis Moti (झरत दसहुं दिस मोती)
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