Kano Suni So Jhooth Sab (कानों सुनी सो झूठ सब): Difference between revisions
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description = ‘संत दरिया प्रेम की बात करेंगे। उन्होंने प्रेम से जाना। इसके पहले कि हम उनके वचनों में उतरें...अनूठे वचन हैं ये। और वचन हैं बिलकुल गैर-पढ़े लिखे आदमी के। दरिया को शब्द तो आता ही नहीं था; अति गरीब घर में पैदा हुए—धुनिया थे, मुसलमान थे। लेकिन बचपन से ही एक ही धुन थी कि कैसे प्रभु का रस बरसे, कैसे प्रार्थना पके। बहुत द्वार खटखटाए, न मालूम कितने मौलवियों, न मालूम कितने पंडितों के द्वार पर गए लेकिन सबको छूंछे पाया। वहां बात तो बहुत थी, लेकिन दरिया जो खोज रहे थे, उसका कोई भी पता न था। वहां सिद्धांत बहुत थे, शास्त्र बहुत थे, लेकिन दरिया को शास्त्र और सिद्धांत से कुछ लेना न था। वे तो उन आंखों की तलाश में थे जो परमात्मा की बन गई हों। वे तो उस हृदय की खोज में थे, जिसमें परमात्मा का सागर लहराने लगा हो। वे तो उस आदमी की छाया में बैठना चाहते थे जिसके रोएं-रोएं में प्रेम का झरना बह रहा हो। सो, बहुत द्वार खटखटाए लेकिन खाली हाथ लौटे। पर एक जगह गुरु से मिलन हो ही गया।’ - ओशो | |||
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notes = The first of Osho's three books on [http://www.santdariya.org/ Dariya] (aka Dariyadas, Sant Dariya Saheb, etc), a major 18th c Bihari poet and mystic, who is said to have composed over 15000 verses. Talks for this book preceded those for ''[[Dariya Kahe Sabad Nirvana (दरिया कहे शब्द निर्वाण)]]'' and ''[[Ami Jharat Bigsat Kanwal (अमी झरत बिगसत कंवल)]]'' by a year and a half. ''Kano Suni'' is the most obscure of the three and is only available in audio and ebook form, the latter not widely. See [[Talk:Kano Suni So Jhooth Sab (कानों सुनी सो झूठ सब)|discussion]] for a TOC and more. | | |||
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[[Category:Not Translated to English (hi:अंग्रेजी में अनूदित नहीं)]] | |||
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Revision as of 18:33, 28 May 2014
- ‘संत दरिया प्रेम की बात करेंगे। उन्होंने प्रेम से जाना। इसके पहले कि हम उनके वचनों में उतरें...अनूठे वचन हैं ये। और वचन हैं बिलकुल गैर-पढ़े लिखे आदमी के। दरिया को शब्द तो आता ही नहीं था; अति गरीब घर में पैदा हुए—धुनिया थे, मुसलमान थे। लेकिन बचपन से ही एक ही धुन थी कि कैसे प्रभु का रस बरसे, कैसे प्रार्थना पके। बहुत द्वार खटखटाए, न मालूम कितने मौलवियों, न मालूम कितने पंडितों के द्वार पर गए लेकिन सबको छूंछे पाया। वहां बात तो बहुत थी, लेकिन दरिया जो खोज रहे थे, उसका कोई भी पता न था। वहां सिद्धांत बहुत थे, शास्त्र बहुत थे, लेकिन दरिया को शास्त्र और सिद्धांत से कुछ लेना न था। वे तो उन आंखों की तलाश में थे जो परमात्मा की बन गई हों। वे तो उस हृदय की खोज में थे, जिसमें परमात्मा का सागर लहराने लगा हो। वे तो उस आदमी की छाया में बैठना चाहते थे जिसके रोएं-रोएं में प्रेम का झरना बह रहा हो। सो, बहुत द्वार खटखटाए लेकिन खाली हाथ लौटे। पर एक जगह गुरु से मिलन हो ही गया।’ - ओशो
- notes
- The first of Osho's three books on Dariya (aka Dariyadas, Sant Dariya Saheb, etc), a major 18th c Bihari poet and mystic, who is said to have composed over 15000 verses. Talks for this book preceded those for Dariya Kahe Sabad Nirvana (दरिया कहे शब्द निर्वाण) and Ami Jharat Bigsat Kanwal (अमी झरत बिगसत कंवल) by a year and a half. Kano Suni is the most obscure of the three and is only available in audio and ebook form, the latter not widely. See discussion for a TOC and more.
- time period of Osho's original talks/writings
- Jul 11, 1977 to Jul 20, 1977 : timeline
- number of discourses/chapters
- 10
editions
Kano Suni So Jhooth Sab (कानों सुनी सो झूठ सब)
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