Piv Piv Laagi Pyas (पिव पिव लागी प्यास)
- नदी बह रही है, तुम प्यासे खड़े हो; झुको, अंजुली बनाओ हाथ की, तो तुम्हारी प्यास बुझ सकती है। लेकिन तुम अकड़े ही खड़े रहो, जैसे तुम्हारी रीढ़ को लकवा मार गया हो, तो नदी बहती रहेगी तुम्हारे पास और तुम प्यासे खड़े रहोगे। हाथ भर की ही दूरी थी, जरा से झुकते कि सब पा लेते। लेकिन उतने झुकने को तुम राजी न हुए। और नदी के पास छलांग मार कर तुम्हारी अंजुली में आ जाने का कोई उपाय नहीं है। और आ भी जाए, अगर अंजुली बंधी न हो, तो भी आने से कोई सार न होगा।
- शिष्यत्व का अर्थ है: झुकने की तैयारी। दीक्षा का अर्थ है: अब मैं झुका ही रहूंगा। वह एक स्थायी भाव है। ऐसा नहीं है कि तुम कभी झुके और कभी नहीं झुके। शिष्यत्व का अर्थ है, अब मैं झुका ही रहूंगा; अब तुम्हारी मर्जी। जब चाहो बरसना, तुम मुझे गैर-झुका न पाओगे।
- ओशो
- notes
- Osho has two series on Dadu, a 16th c Gujarati saint, this and Sabai Sayane Ek Mat (सबै सयाने एकमत), a couple of months later.
- time period of Osho's original talks/writings
- Jul 11, 1975 to Jul 20, 1975 : timeline
- number of discourses/chapters
- 10
editions
Piv Piv Laagi Pyas (पिव पिव लागी प्यास)
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