Samadhi Ke Dwar Par (समाधि के द्वार पर)
- जैसे अंधेरे में कोई अचानक दीये को जला दे, और जहां कुछ भी दिखाई न पड़ता हो वहां सभी कुछ दिखाई न पड़ने लगे, ऐसे ही जीवन के अंधकार में समाधि का दीया है। या जैसे कोई मरुस्थल में वर्षों से वर्षा न हुई हो और धरती के प्राण पानी के लिए प्यास से लड़पते हों, और फिर अचानक मेघ घिर जाएं और वर्षा की बूंदें पड़ने लगें, तो जैसा उस मरुस्थल में समाधि की वर्षा है। या जैसे कोई मरा हुआ अचानक जीवित हो जाए, और जहां श्वास न चलती हो वहां श्वास चलने लगे, और जहां आंखें न खुलती हों वहां आंखें खुल जाएं, और जहां जीवन तिरोहीत हो गया था वहां वापस उसके पदचाप सुनाई पड़ने लगें, ऐसा ही मरे हुए जीवन में समाधि का आगमन है।
- समाधि से ज्यादा महत्वपूर्ण जीवन में कुछ भी नहीं है। न तो कोई आंनद मिल सकता है समाधि के बिना, न कोई शांति मिल सकती है, न कोई सत्य मिल सकता है।
- notes
- Talks given at the meditation camp in Poona in Feb 1970. Audio is available for six talks, 7th talk was silent talk. See discussion for details, TOCs, dates and events.
- Chapters 1, 3-4, 6 previously published in Shunya Samadhi (शून्य समाधि) (ch.1-2, 4 (only first question there) and 3 accordingly).
- Chapters 2 and 5 also available in OshoWorld e-book Aath Pahar Youn Jhumte (आठ पहर यूं झूमते) as ch.7 and 6 accordingly.
- time period of Osho's original talks/writings
- Feb 21, 1970 to Feb 24, 1970 : timeline
- number of discourses/chapters
- 6 + silent not recorded talk
editions
Samadhi Ke Dwar Par (समाधि के द्वार पर)
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