Jeevan Ras Ganga (जीवन रस गंगा)

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"मनुष्य का जीवन एक कुंठा बन गया है इसीलिए। अतीत का अति मोह मनुष्य को जीवन के संपर्क में ही नहीं आने देता--न जीवन के आनंद के संपर्क में, न सौंदर्य के, न सत्य के, न प्रेम के। इसलिए आज की इस भूमिका की चर्चा में कुछ उन बातों के संबंध में मैं कहना चाहूंगा, जो यदि हम हटा दें, तो उन्हें हटाने से हम कुछ भी नहीं खो देंगे, लेकिन उन्हें हटाते ही जीवन की धारा गतिमान हो उठेगी और जीवन भविष्य की ओर बहने लगेगा। उन हटाए जाने वाले पत्थरों में पहली बात है, परंपरा का अति मोह, पीछे की तरफ देखने की हमारी पागल आदत। यह वैसे ही है जैसे हम एक कार बनाएं, इंजन तो आगे की तरफ चलता हो और हेडलाइट पीछे की तरफ लगे हों। कार का प्रकाश पीछे की तरफ पड़ता हो और कार आगे की तरफ चलती हो। क्या होगा भाग्य उस गाड़ी का? वही भाग्य पूरी मनुष्य-जाति का हो गया है। हमारी आंखें पीछे की तरफ लगी हैं और जीवन कभी पीछे की तरफ नहीं जाता है। जीवन निरंतर आगे की ओर उन्मुख है। जीवन रोज आगे की तरफ जाता है। जीवन का रास्ता रोज नया है और हमारी आंखें हमेशा पुरानी हैं और पीछे की तरफ देखने वाली हैं। आंखें भी आगे की ओर देखने वाली चाहिए। और ये आंखें तभी हो सकती हैं आगे की ओर देखने वाली, भविष्य की ओर देखने वाली, जब हम पीछे के पत्थरों का अर्थ समझ लें, उनकी व्यर्थता समझ लें, उन्हें रास्ते से हटाने का साहस जुटा लें। लेकिन परंपरा मनुष्य को ऐसे जकड़े हुए है जैसे मृत्यु। परंपरा मनुष्य की गर्दन पर इस भांति हाथ कसे हुए है कि उसकी जीवन-चेतना को मुक्त ही नहीं होने देती है। और परंपराएं कैसे खड़ी हो जाती हैं? एक गांव में दो समानांतर रास्ते थे। उन दोनों रास्तों पर हजारों लोग रहते थे। एक दिन दोपहर को, एक रास्ते से दूसरे रास्ते की तरफ आता हुआ एक सूफी फकीर देखा गया, उसकी आंखों से आंसू झर रहे थे। उस रास्ते से निकलने वाले एक-दो लोगों ने पूछा कि मित्र, क्यों रो रहे हो? लेकिन उसकी आंखें इतने आंसुओं से भरी थीं कि वह कुछ भी उत्तर नहीं दे सका और अपने रास्ते चला गया।" —ओशो
notes
Seven talks givern in Bombay in Apr 1968. They are only available in audio under this name and available on OshoWorld as the last seven audios of Mati Kahai Kumhar Sun (माटी कहै कुम्हार सूं). See discussion for an audio TOC and some exploration of this relationship with Mati.
Chapter 2 also published as ch.6 of Mati Kahai Kumhar Sun (माटी कहै कुम्हार सूं) (RF 1980 and Hind Pocket Books editions).
Chapter 5 previously published as ch.6 of Amrit Ki Disha (अमृत की दिशा).
time period of Osho's original talks/writings
Apr 7 1968, to Apr 10, 1968 : timeline
number of discourses/chapters
7


editions

Jeevan Ras Ganga (जीवन रस गंगा)

Year of publication : <1997
Publisher :
ISBN
Number of pages :
Hardcover / Paperback / Ebook :
Edition notes : A list from Osho Diary 1997 (the image) mentions this title as published earlier.