Letter written on 10 Apr 1970: Difference between revisions
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Revision as of 12:22, 9 August 2021
Letter written to Sw Anand Maitreya, whom Osho addressed as Mathura Babu, on 10 Apr 1970. It has been published in Prem Ke Phool (प्रेम के फूल), as letter #61.
There is no letterhead for this letter but the paper is an unusual square shape, so it may be that the original letterhead has been cut off.
प्रिय मथुरा बाबू, यह जानकर आनंदित हूँ कि मां की मृत्यु से आपको स्वयं की मृत्यु का ख़याल आया है। मृत्यु के बोध में से ही अमृत की उपलब्धि की संभावना है। मृत्यु की चोट सदा गहरी है लेकिन मनुष्य का मन चालाक है और उसे भी टाल जाता है। आप टालना मत। स्वयं को समझाना मत। किसी भी भांति की सांत्वना आत्मघातक है। मृत्यु के घाव को ठीक से बनने देना। जागना और उस घाव के साथ जीना। कठिन होगा यह जीना। लेकिन, कठिनाई के बिना क्रांति भी तो नहीं है। मृत्यु है। सदा साथ है। लेकिन, हम उसे विस्मरण किये रहते हैं। मृत्यु रोज है। प्रतिपल है। लेकिन, हम उसके प्रति बेहोश बने रहते हैं। और इस कारण ही हमे जीवन का भी कोई पता नहीं चलता है। मृत्यु से बचने में मनुष्य जीवन से भी चूक जाता है। क्योंकि वे दोनों एक ही सिक्के के दो पहलु हैं। क्योंकि वे दोनों एक ही गाड़ी के दो चाक हैं। और जो उन दोनों को ही जान लेता है, उसके लिए वे दोनों एक ही होजाते हैं। उस एकता का नाम ही अस्तित्व है। और उस अस्तित्व में होना ही मुक्ति है। रजनीश के प्रणाम १०/४/१९७० |
- See also
- Prem Ke Phool ~ 061 - The event of this letter.