Letter written on 16 Feb 1966 pm

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Letter written to Pratap J. Toliya on 16 Feb 1966 in evening. It is unknown if it has been published or not.

Sw Satya Anuragi kindly shared this and other 17 letters to Pratap.


Acharya Rajnish

Jeevan Jagruti Kendra, 115, Napier Town, Jabalpur (M.P.)

रात्रि:
१६/२/१९६६

मेरे प्रिय।
प्रेम। पत्र पाकर आनंदित हूं।

संगीत से मेरा विरोध नहीं है वरन संगीत के लिए ही सारा प्रयास है-- उस संगीत के लिए जहां न शब्द हैं, न ध्वनि है, न कुछ और ही है क्योंकि शब्द और स्वर और नाद संगीत नहीं, संगीत में बाधाएं (Disturbances) हैं। जिसे साधा जा सके वह संगीत नहीं है। संगीत तो भीतर है-- वह तो स्वरूप है। उसे  साधना नहीं, बस उसके प्रति जागना भर है। इस जागरण को जीवन की किसी भी दिशा से पाया जा सकता है। संगीत से भी-- स्वर और शब्द से भी। तन्मयता की जगह जागरूकता पर ध्यान दो। भूलो मत। साक्षी बनो। खोना नहीं है: होना है। संगीत को साधो लेकिन उससे भी ज्यादा उसके प्रति स्वयं के होश को साधो। बाहर संगीत, भीतर स्वयं: इसे सूत्र जानों। सब भांति प्रश्न है साक्षी भाव के जगने का। फिर संगीत हो या सेक्स हो या कि कुछ और हो। साक्षी चैतन्य जागने लगे तो जो द्वार जगत में जाने के हैं, वे ही द्वार स्वयं में जाने के हो जाते हैं। संक्षेप में: मूर्च्छा स्वयं के बाहर और अमूर्च्छा स्वयं के भीतर ले जाती है।

शिविर की चर्चाएं देखकर वापिस भेज रहा हूं। ठीक हैं। जो भी उपयोग चाहो कर सकते हो। हिंदी के पत्रों या पत्रिकाओं में भी तुम्ही भेज दो। गुजराती में भी भेजो। आगे जो लिखो, उन्हें मुझे भेजने की जरूरत नहीं है। मैंने उन्हें भी देख  ही लिया है। प्रश्न वस्तुतः तुम्हें देखने का है। और क्या मैंने तुम्हें नहीं देख लिया है?

वहां सबको प्रेम।

रजनीश के प्रणाम


See also
Letters to Pratap ~ 03 - The event of this letter.