Letter written on 19 Apr 1963

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Letter written to Mr Badri Soni, Raj Nagar, Rajasthan on 19 Apr 1963. It is unknown if it has been published or not.

Sw Satya Anuragi kindly shared this letter.

आचार्य रजनीश

दर्शन विभाग
महाकोशल कला महाविद्यालय
११५, नेपियर टाउन
जबलपुर (म०प्र०)

श्री बद्री सोनी को,

प्रिय आत्मन्,
स्नेह। तुम्हारा पत्र मिला है। मैं तो कब से प्रतीक्षा में था! दर्शन पर अध्ययन करना चाहते हो पर अध्ययन से दर्शन का दूर का भी संबंध नहीं है। दर्शन का अर्थ है 'देखना'। यह 'देखना' अंतर्दृष्टि के उपलब्ध होने से होता है। एक आंख भीतर है। उसे खोलना है। उससे सत्य साक्षात होता है। उसके अभाव में सत्य को नहीं, सत्य के संबंध में ही जान सकते हो। वह सब जानना बासा और मृत होता है। उस संबंध में मैं कोई सलाह नहीं देता हूं। जब जीवंत सत्य को जानने की संभावना है तो मृत विचारों की शोध-खोज का कोई प्रयोजन नहीं है। शास्त्रों में और शब्दों में नहीं, सत्य को निशब्द में और अपने में खोजना होता है। इस खोज में लगो। कुछ समय को मौन और खामोश रहा करो। बाहर से ही नहीं, भीतर से भी । चुपचाप विचारों के दृष्टा बन कर बैठे रहे। धीरे-धीरे विचार शून्य होने लगते हैं और 'जो है' वह उद्घाटित हो जाता है। शून्य ही अंतर्दृष्टि है। शून्य ही प्रज्ञा-चक्षु है। शून्य ही दर्शन का द्वार है।

सबको मेरे प्रणाम कहना। मैं उस ओर आया तो सूचित करुंगा। चित्र साथ भेज रहा हूं।

रजनीश के शुभाशीष

१९ अप्रेल १९६३


See also
Letters to Badri ~ 01 - The event of this letter.