Letter written on 19 Feb 1971: Difference between revisions
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acharya rajneesh | |||
A-1 WOODLAND PEDDAR ROAD BOMBAY-26. PHONE: 382184 | |||
प्रिय कृष्ण सरस्वती,<br> | |||
प्रेम। शुक्ल पक्ष शुरू हुआ था -- चांद धीरे धीरे पूर्णिमा की ओर बढ़ रहा था। | |||
[[ | और चांद के बढ़ने के साथ ही सूफी फकीरों के नृत्य की गति बढ़ती जाती थी। | ||
पुरे चांद के होजाने तक वे रोज रात्रि नाचने वाले थे। | |||
किसी अलौकिक मदिरा में वे जैसे डूबे थे। | |||
वे शायद नाचते नहीं थे -- प्रभु ही उन्हें नचा रहा था ! | |||
या, प्रभु ही उनमें नाच रहा था। | |||
<u>वैसे दोनों बातें एक ही अर्थ रखती हैं।</u> | |||
<u>स्वयं में मिटे बिना कोई स्वयं को प्रभु में छोड़ता ही कहां है ?</u> | |||
एक व्यक्ति ने आकर पूछाः " क्या मैं भी इस नृत्य में सम्मिलित होसकता हूँ ?" | |||
सूफियों के प्रधान ने कहाः " <u>'मैं' के रहते</u> कैसे सम्मिलित होसकोगे ? <u>फिर, यह नृत्य नहीं</u>, जीवन है -- नृत्य नहीं,अस्तित्व है। और, फिर इसमें सम्मिलित होने के पूर्व परीक्षा भी तो आवश्यक हैं ? " | |||
उस आदमी ने पूछाः "कैसी परीक्षा ?" | |||
फकीर ने कहाः " पहले तीन दिन का पूर्ण उपवास करो। फिर स्वादिष्ट भोजन रखना स्वयं के सामने और फिर नृत्य और भोजन में चुनाव करना। <u>यदि फिर भी तुम नृत्य को चुन सको</u> तो हम तुम्हारा स्वागत करेंगे." | |||
निश्चय ही -- तप के बिना नृत्य कहां ? | |||
तप के बिना गीत कहां -- गान कहां ? | |||
तप के बिना सुर कहां -- संगीत कहां ? | |||
रजनीश के प्रणाम | |||
१९/२/१९७१ | |||
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:[[Pad Ghunghru Bandh ~ 081]] - The event of this letter. | |||
:[https://www.oshonews.com/2020/08/28/if-you-can-still-choose-to-dance/ Translation on Osho News] | |||
[[Category:Manuscripts|Letter 1971-02-19]] [[Category:Manuscript Letters (hi:पांडुलिपि पत्र)|Letter 1971-02-19]] |
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Letter written to Sw Krishna Saraswati on 19 Feb 1971. On this date Osho also wrote to him other letter Letter written on 19 Feb 1971 (2). It has been published in Pad Ghunghru Bandh (पद घुंघरू बांध) as letter 81.
acharya rajneesh A-1 WOODLAND PEDDAR ROAD BOMBAY-26. PHONE: 382184 प्रिय कृष्ण सरस्वती, और चांद के बढ़ने के साथ ही सूफी फकीरों के नृत्य की गति बढ़ती जाती थी। पुरे चांद के होजाने तक वे रोज रात्रि नाचने वाले थे। किसी अलौकिक मदिरा में वे जैसे डूबे थे। वे शायद नाचते नहीं थे -- प्रभु ही उन्हें नचा रहा था ! या, प्रभु ही उनमें नाच रहा था। वैसे दोनों बातें एक ही अर्थ रखती हैं। स्वयं में मिटे बिना कोई स्वयं को प्रभु में छोड़ता ही कहां है ? एक व्यक्ति ने आकर पूछाः " क्या मैं भी इस नृत्य में सम्मिलित होसकता हूँ ?" सूफियों के प्रधान ने कहाः " 'मैं' के रहते कैसे सम्मिलित होसकोगे ? फिर, यह नृत्य नहीं, जीवन है -- नृत्य नहीं,अस्तित्व है। और, फिर इसमें सम्मिलित होने के पूर्व परीक्षा भी तो आवश्यक हैं ? " उस आदमी ने पूछाः "कैसी परीक्षा ?" फकीर ने कहाः " पहले तीन दिन का पूर्ण उपवास करो। फिर स्वादिष्ट भोजन रखना स्वयं के सामने और फिर नृत्य और भोजन में चुनाव करना। यदि फिर भी तुम नृत्य को चुन सको तो हम तुम्हारा स्वागत करेंगे." निश्चय ही -- तप के बिना नृत्य कहां ? तप के बिना गीत कहां -- गान कहां ? तप के बिना सुर कहां -- संगीत कहां ? रजनीश के प्रणाम १९/२/१९७१ |
- See also
- Pad Ghunghru Bandh ~ 081 - The event of this letter.
- Translation on Osho News