Nahin Jog, Nahin Jaap (नहीं जोग, नहिं जाप)
- ‘ऐसन साहब कबीर, सलोना आप है। नहीं जोग नहिं जाप, पुन्न नहि पाप है। कबीर कहते हैं, ‘ऐसर साहब कबीर’ – कबीर के साहब ऐसे हैं, खुद तो प्यारे, सुंदर, अनूठे, अद्वितीय है- उनसे तुम भी पैदा हुए हो। ‘नहीं जोग नहीं जाप’ – न तो कोई जप करने की जरूरत है, न कोई जोग करने की जरूरत है न तो पुण्य करने की जरूरत है, न पाप से भयभीत होने की जरूरत है, क्योंकि उस परम की निकटता में नतो पाप बचता है, न पुण्य बचता है। ओशो द्वारा कबीर-वाणी पर दिए गए दस अमृत प्रवचनों के संकलन ‘कस्तूरी कुंडल बसै’ से लिए गए पांच (६-१०) प्रवचन इस पुस्तक में संकलित हैं। कबीर वाणी
- notes
- Discourses on five selected verses from the Kabīra-vāṇī, by Kabir, the 15th century Indian poet-mystic, published previously as chapters 6-10 of Kasturi Kundal Basai (कस्तूरी कुंडल बसै).
- time period of Osho's original talks/writings
- from Mar 16, 1975 to Mar 20, 1975 : timeline
- number of discourses/chapters
- 5
editions
Nahin Jog, Nahin Jaap (नहीं जोग, नहिं जाप)
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