Talk:Pad Ghunghru Bandh (पद घुंघरू बांध): Difference between revisions

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| 75. संन्यास है--मन से मनातीत में यात्रा ||  ||  
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| 76. ध्यान--रूपांतरण की विधायक खोज ||  ||
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| 77. द्वंद्व अज्ञान में ही है ||  ||
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| 78. काम-ऊर्जा का रूपांतरण--संभोग में साक्षीत्व से ||  ||
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| 79. आत्म-सृजन का श्रम करो ||  ||
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| 80. मन का भिखमंगापन ||  ||
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| 81. स्वयं का मिटना ही एकमात्र तप है ||  ||
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| 82. वही दे सकते हैं--जो कि हम हैं ||  ||
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| 83. स्वर्ग और नरक--एक ही तथ्य के दो छोर ||  ||
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| 84. अधैर्य से साधना में विलंब ||  ||
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| 85. नासमझदारों की समझ ||  ||
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| 86. आदमी ऐसा ही जीता है--तिरछा-तिरछा ||  ||
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| 87. समग्रता से किया गया कोई भी कर्म अतिक्रमण बन जाता है ||  ||
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| 88. चाह से मुक्ति ही मोक्ष है ||  ||
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| 89. अंतर-अभीप्सा ही निर्णायक है ||  ||
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| 90. सत्य की खोजः लंबी यात्रा, अशेष यात्री ||  ||
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| 91. अज्ञात को ज्ञात से समझने की असफल चेष्टा ||  ||
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| 92. हर पल जीता हूं पूरा ||  ||
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| 93. जिंदगी तर्क और गणित से बहुत अधिक है ||  ||
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| 94. जीवन की धन्यता है--अभिव्यक्ति में--स्वयं की, स्वधर्म की ||  ||
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| 95. सम-चित्त में अद्वैत स्वरूप का बोध ||  ||
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| 96. संकल्प पूर्ण हुआ कि शून्य हुआ ||  ||
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| 97. साक्षी की प्रत्यभिज्ञा (रिकग्निशन) ही ध्यान है ||  ||
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| 98. साधन के मार्ग पर शत्रु भी मित्र है ||  ||
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| 99. शांत साक्षीभाव में ही डूब ||  ||
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| 100. आदमी की कुशलता--वरदानों को भी अभिशाप में बदलने की ||  ||
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| 101. गहरा खेल शब्दों का ||  ||
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| 102. पवित्र प्रार्थना--आंसुओं में नहाई ||  ||
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| 103. पीड़ा को भी उत्सव बना लेने की कला ||  ||
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| 104. वही है, वही है--सब ओर वही है ||  ||
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| 105. संकल्प के पंख--साधना में उड़ान ||  ||
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| 106. मुझसे मिलने की निकटतम द्वार--गहरा ध्यान ||  ||
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| 107. अंतः संन्यास का संकल्प ||  ||
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| 108. क्रोध के दर्शन से क्रोध की ऊर्जा का रूपांतरण ||  ||
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| 109. स्वरहीन-संगीत में डूबो ||  ||
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| 110. समष्टि को बांट दिया ध्यान ही समाधि बन जाता है ||  ||
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| 111. प्रभु द्वार पर हुई देर भी शुभ है ||  ||
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| 112. समझ (अंडरस्टैंडिंग) ही मुक्ति है ||  ||
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| 113. संन्यास--रूपांतरण की कमियां ||  ||
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| 114. उसका होना ही उसका ज्ञान भी है ||  ||
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| 115. जागे बिना सत्य से परिचय नहीं ||  ||
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| 116. साधना को तो सिद्धि तक पहुंचाना ही है ||  ||
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| 117. सदा स्मरण रखें--जीवन है एक खेल ||  ||
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| 118. साहस--अज्ञात में छलांग का ||  ||
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| 119. जिन खोजा तिन पाइयां ||  ||
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| 120. अथक श्रम--और परीक्षा धैर्य की ||  ||
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| 121. जीवन को उत्सव बना लेने की कला संन्यास है ||  ||
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| 122. प्रभु-पथ से लौटना नहीं है ||  ||
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| 123. स्वयं को खोकर ही पा सकोगे सर्व को ||  ||
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| 124. शून्य में नृत्य और स्वरहीन संगीत ||  ||
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| 125. ‘न-करना’ है करने की अंतिम अवस्था ||  ||
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| 126. अहंकार की सीमा ||  ||
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| 127. स्वयं को समझो ||  ||
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| 128. एकमात्र यात्रा--अंतस की ||  ||
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| 129. पर करो--कुछ तो करो ||  ||
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| 130. पहले समझो ही ||  ||
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| 131. अति सूक्ष्म हैं--अहंकार के रास्ते ||  ||
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| 132. अपनी चिंता पर्याप्त है ||  ||
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| 133. फूल, कांटे और साधना ||  ||
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| 134. जीवन है एक चुनौती ||  ||
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| 135. छलांग--बाहर--शरीर के, संसार के, समय के ||  ||
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| 136. स्वयं की खोज ही संन्यास है ||  ||
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| 137. पागल होने की विधि है यह--लेकिन प्रज्ञा में ||  ||
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| 138. प्रभु-प्रकाश की पहली किरण ||  ||
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| 139. अस्वस्थता को भी अवसर बना लो ||  ||
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| 140. दिन-रात की धूप-छांव में स्वयं को भूल मत जाना ||  ||
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| 141. नियति का बोध परम आनंद है ||  ||
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| 142. स्वनिर्मित कारागृहों में कैद आदमी ||  ||
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| 143. समय रहते जाग जाना आवश्यक है ||  ||
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| 144. अमूर्च्छा का आक्रमण--मूर्च्छा पर ||  ||
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| 145. कुछ भी हो--ध्यान को नहीं रोकना है ||  ||
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| 146. देखो स्थिति और हो जाने दो समर्पण ||  ||
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| 147. नाचो--गाओ और प्रभु की धुन में डूबो ||  ||
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| 148. आनंद है महामंत्र ||  ||
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| 149. जीवन नृत्य है ||  ||
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| 150. पद घुंघरू बांध ||  ||


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And that's all there is for now! -- doofus-9 06:44, 20 January 2017 (UTC)
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Rest titles from TOC of Shailendra's e-book:
<pre>
76/ ध्यान--रूपांतरण की विधायक खोज
77/ द्वंद्व अज्ञान में ही है
78/ काम-ऊर्जा का रूपांतरण--संभोग में साक्षीत्व से
79/ आत्म-सृजन का श्रम करो
80/ मन का भिखमंगापन
81/ स्वयं का मिटना ही एकमात्र तप है
82/ वही दे सकते हैं--जो कि हम हैं
83/ स्वर्ग और नरक--एक ही तथ्य के दो छोर
84/ अधैर्य से साधना में विलंब
85/ नासमझदारों की समझ
86/ आदमी ऐसा ही जीता है--तिरछा-तिरछा
87/ समग्रता से किया गया कोई भी कर्म अतिक्रमण बन जाता है
88/ चाह से मुक्ति ही मोक्ष है
89/ अंतर-अभीप्सा ही निर्णायक है
90/ सत्य की खोजः लंबी यात्रा, अशेष यात्री
91/ अज्ञात को ज्ञात से समझने की असफल चेष्टा
92/ हर पल जीता हूं पूरा
93/ जिंदगी तर्क और गणित से बहुत अधिक है
94/ जीवन की धन्यता है--अभिव्यक्ति में--स्वयं की, स्वधर्म की
95/ सम-चित्त में अद्वैत स्वरूप का बोध
96/ संकल्प पूर्ण हुआ कि शून्य हुआ
97/ साक्षी की प्रत्यभिज्ञा (रिकग्निशन) ही ध्यान है
98/ साधन के मार्ग पर शत्रु भी मित्र है
99/ शांत साक्षीभाव में ही डूब
100/ आदमी की कुशलता--वरदानों को भी अभिशाप में बदलने की
101/ गहरा खेल शब्दों का
102/ पवित्र प्रार्थना--आंसुओं में नहाई
103/ पीड़ा को भी उत्सव बना लेने की कला
104/ वही है, वही है--सब ओर वही है
105/ संकल्प के पंख--साधना में उड़ान
106/ मुझसे मिलने की निकटतम द्वार--गहरा ध्यान
107/ अंतः संन्यास का संकल्प
108/ क्रोध के दर्शन से क्रोध की ऊर्जा का रूपांतरण
109/ स्वरहीन-संगीत में डूबो
110/ समष्टि को बांट दिया ध्यान ही समाधि बन जाता है
111/ प्रभु द्वार पर हुई देर भी शुभ है
112/ समझ (अंडरस्टैंडिंग) ही मुक्ति है
113/ संन्यास--रूपांतरण की कमियां
114/ उसका होना ही उसका ज्ञान भी है
115/ जागे बिना सत्य से परिचय नहीं
116/ साधना को तो सिद्धि तक पहुंचाना ही है
117/ सदा स्मरण रखें--जीवन है एक खेल
118/ साहस--अज्ञात में छलांग का
119/ जिन खोजा तिन पाइयां
120/ अथक श्रम--और परीक्षा धैर्य की
121/ जीवन को उत्सव बना लेने की कला संन्यास है
122/ प्रभु-पथ से लौटना नहीं है
123/ स्वयं को खोकर ही पा सकोगे सर्व को
124/ शून्य में नृत्य और स्वरहीन संगीत
125/ ‘न-करना’ है करने की अंतिम अवस्था
126/ अहंकार की सीमा
127/ स्वयं को समझो
128/ एकमात्र यात्रा--अंतस की
129/ पर करो--कुछ तो करो
130/ पहले समझो ही
131/ अति सूक्ष्म हैं--अहंकार के रास्ते
132/ अपनी चिंता पर्याप्त है
133/ फूल, कांटे और साधना
134/ जीवन है एक चुनौती
135/ छलांग--बाहर--शरीर के, संसार के, समय के
136/ स्वयं की खोज ही संन्यास है
137/ पागल होने की विधि है यह--लेकिन प्रज्ञा में
138/ प्रभु-प्रकाश की पहली किरण
139/ अस्वस्थता को भी अवसर बना लो
140/ दिन-रात की धूप-छांव में स्वयं को भूल मत जाना
141/ नियति का बोध परम आनंद है
142/ स्वनिर्मित कारागृहों में कैद आदमी
143/ समय रहते जाग जाना आवश्यक है
144/ अमूर्च्छा का आक्रमण--मूर्च्छा पर
145/ कुछ भी हो--ध्यान को नहीं रोकना है
146/ देखो स्थिति और हो जाने दो समर्पण
147/ नाचो--गाओ और प्रभु की धुन में डूबो
148/ आनंद है महामंत्र
149/ जीवन नृत्य है
150/ पद घुंघरू बांध
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--DhyanAntar 18:03, 27 September 2018 (UTC)

Revision as of 03:59, 13 November 2018

TOC and other info

(supplied by Shailendra)

Title Date Recipient
1. अहं अज्ञान है--प्रेम ज्ञान है -- Sadhvi Chandana
2. प्यास की पीड़ा ही अंततः प्राप्ति बन जाता है Jul 6, 1966 Sadhvi Chandana
3. मृत परंपराओं व दासताओं से मुक्ति Jul 15, 1966 Sadhvi Chandana
4. सत्य के पथ पर अडिग और अदम्य साहस आवश्यक Aug 17, 1966 Sadhvi Chandana
5. नये जन्म की प्रसव-पीड़ा--रिक्तता व अभाव का साक्षात Sep 10, 1966 Sadhvi Chandana
6. मन के घास-फसों की सफाई Oct 10, 1966 Sadhvi Chandana
7. धन का अंधापन Oct 7, 1967 Sadhvi Chandana
8. विश्वास-अविश्वास के द्वंद्व से शून्य मन Aug 10, 1968 Sadhvi Chandana
9. साधुता--कांटों में रह कर फल बने रहने की क्षमता Sep 10, 1968 Sadhvi Chandana
10. समय के साथ नया होना ही जीवन है Jan 9, 1969 Sadhvi Chandana
11. ‘जो है’ उसी का नाम ईश्वर है Mar 5, 1969 Sri Pushkar Gokani, Dwarka GJ
12. असुरक्षा का स्रोत--सुरक्षा की अति आतुरता Jan 5, 1971 Ma Yoga Kranti, Jabalpur
13. जीओ पल-पल न टालो कल पर Jan 7, 1971 Ma Yoga Kranti, Jabalpur
14. ज्ञान-सूत्र--‘यह भी बीत जाएगा’ Jan 10, 1971 Ma Yoga Kranti, Jabalpur
15. प्रार्थना में शब्द नहीं--सुने जाते हैं भाव Jan 14, 1972** Sw Yoga Chinmaya, Bombay
16. धर्म अभिव्यक्ति की सतत रूपांतरण प्रक्रिया Jan 25, 1971 Sw Yoga Chinmaya, Bombay
17.ईर्ष्या के सूक्ष्म हैं यात्रा-पथ Jan 27, 1971 Sw Yoga Chinmaya, Bombay
18. यही जवाब है इसका कि कुछ जवाब नहीं -- Sri Indraraj Anand, Bombay
19. स्वीकार से--शांति, शून्यता और रूपांतरण Jan 28, 1971 Sri Indraraj Anand, Bombay
20. प्रतीक्षारत तैयारी--विस्फोट को झेलने की Jan 29, 1971 Sw Yoga Chinmaya, Bombay
21. अहंकार चुराने वाले चोर Jan 29, 1971 Sri Indraraj Anand, Bombay
22. मिटने की तैयारी रख Jan 29, 1971 Smt Neela, Vileparle, Bombay
23. एक ही भासता है अनेक Jan 29, 1971 Sri Rajneekant, Rajkot GJ
24. स्वीकार से दुख का विसर्जन Jan 29, 1971 Sri Dasbhai Patel, Bijapur GJ
25. जन्मों का अंधेरा और ध्यान का दिया Jan 29, 1971 Sri Lala Sunderlal Ji, Javaharnagar, Delhi
26. प्रार्थना, श्रद्धा, समर्पण--बाह्य नहीं आंतरिक घटनाएं Feb 10, 1971 Ma Yoga Laxmi, Bombay
27. आनंद का राज--न चाह सुख की, न भय दुख का Feb 10, 1971 Ma Yoga Kranti, Jabalpur
28. शब्दों की यात्रा में सत्य की मृत्यु Feb 11, 1971 Ma Yoga Kranti, Jabalpur
29. जीवन है--दुर्लभ अवसर Feb 12, 1971 S Rama Patel, Ahmedabad
30. एकमात्र संपत्ति--परमात्म--श्रद्धा Feb 12, 1971 Sw Yoga Chinmaya, Bombay
31. प्रकाश-किरण से सूर्य की ओर Feb 14, 1971 Sri Binukumar H Suthar, Patan GJ
32. सुवास--आंतरिक निकटता की Feb 14, 1971 S Mrinaal Joshi, Poona
33. ध्यान की सरलता--निःसंशय, निर्णायक व संकल्पवान चित्त के लिए Feb 14, 1971 Sri Ranulal Sakalecha, Dhamtari MP
34. अदृश्य, अरूप, निराकार की खोज Feb 14, 1971 Ma Yoga Priya, Ajol GJ
35. आनंदमग्न भाव से नाचती, गाती, निर्भार चेतना का ही ध्यान में प्रवेश Feb 15, 1971 Ma Yoga Priya, Ajol GJ
36. शून्य, शांत व मौन में--वर्षा अनुकंपा की Feb 15, 1971 Sw Chaitanya Bharti, Delhi
37. चमत्कार--‘न-होने’ पर भी ‘होने’ का Feb 15, 1971 Smt Urmila Khotan, Gorakhpur
38. असार्थक की अग्नि-परीक्षा Feb 15, 1971 Sri Brahmadatta Dixit, Udaipur RJ
39. श्रद्धा के दुर्लभ अंकुर Feb 15, 1971 Sau. Mrinaal Joshi, Poona
40. ध्यान में प्रभु--इच्छा का उदघाटन Feb 15, 1971 Sw Brahm Bharti, Pali RJ
41. प्रतीक्षा में ही राज है परम उपलब्धि का Feb 15, 1971 Sw Krishna Kabeer, Ahmedabad
42. स्वयं को तैयार करना--श्रद्धा से, शांति से, संकल्प से Feb 15, 1971 Sri Manakchand Lunavat, Jalna MH
43. अभिशाप में भी वरदान खोजो Feb 15, 1971 Sw Krishna Yashodhar, Poona
44. अवलोकन--वृत्तियों की उत्पत्ति, विकास व विसर्जन का Feb 15, 1971 Sw Krishna Yashodhar, Poona
45. सिद्धांत--क्रांति का अंत है Feb 15, 1971 Sri Chandrakant N Patel, Baroda GJ
46. प्रतिक्रियावादी तथाकथित क्रांतिकारी Feb 15, 1971 Sri Chandrakant N Patel, Baroda GJ
47. सत्ता सदा ही क्रांति विरोधी है Feb 15, 1971 Sri Chandrakant N Patel, Baroda GJ
48. ध्यान है--द्रष्टा, अकर्ता, अभोक्ता रह जाना Feb 15, 1971 Sri Dhanvant Sinha Grovar,
via Sri Pratapsinha, Amritsar
49. समग्र जिज्ञासा में प्रश्न का गिर जाना Feb 16, 1971 Sw Krishna Yashodhar, Poona
50. खोना ही ‘उसे’ खोजने की विधि है Feb 16, 1971 Sw Chaitanya Bharti, Delhi
51. धैर्यपूर्वक पोषण--क्रांति के गर्भाधान का Feb 16, 1971 Sri Chandrakant N Patel, Baroda GJ
52. आत्म-विश्वास से खटखटाओ--प्रभु के द्वार को Feb 16, 1971 Sw Anand Amrit, Ahmedabad
53. अनजाना समर्पण Feb 16, 1971 Sau. Mrinaalini Joshi, Poona
54. तुम्हारी समस्त संभावनाएं मेरे समक्ष साकार हैं Feb 16, 1971 Sw Krishna Kabeer, Ahmedabad
55. सूक्ष्म और अदृश्य कार्य Feb 16, 1971 Sri Rajendra, Rajendra Bicycle Industries, Ludhiana
56. प्रभु-मंदिर की झलकें--ध्यान के द्वार पर Feb 16, 1971 Ma Yoga Priya, Ajol GJ
57. अनुभूति में बुद्धि के प्रयास बाधक Feb 16, 1971 Kumari Rajani Belkar, Poona
58. कामना दुख है, क्योंकि कामना दुष्पूर है Feb 16, 1971 Sau. Rama Patel, Ahmedabad
59. प्रभु-कृपा की अमृत वर्षा और हृदय का उलटा पात्र Feb 16, 1971 Sw Anand Vijay, Jabalpur
60. जन्मों का पुराना--विस्मृत परिचय Feb 17, 1971 Sau. Sadhana Belapurkar, Poona
61. आनंद के आंसुओं से परिचय Feb 17, 1971 Sau. Sadhana Belapurkar, Poona
62. प्रभु-प्रेम को पागल मानने वाले लोगों से Feb 17, 1971 Sw Anand Vijay, Jabalpur
63. हृदय है अंतर्द्वार--प्रभु-मंदिर का Feb 17, 1971 Ma Yoga Bhagwati, Bombay
64. पात्रता का बोध--सबसे बड़ी अपात्रता Feb 17, 1971 Ma Yoga Bhagwati, Bombay
65. प्रमाद है भ्रूण-हत्या--विराट संभावनाओं की Feb 17, 1971 Ma Yoga Bhagwati, Bombay
66. चाह और अपेक्षा हैं जननी दुख की
67. रूपांतरण के पूर्व की कसौटियां
68. ज्ञानी का शरीर भी मंदिर हो जाता है
69. भेद है अज्ञान में
70. जीवन सत्य की ओर केवल मौन इशारे संभव
71. स्वयं रूपांतरण से गुजर कर ही समझ सकोगी
72. ज्ञान की गति है--अनूठी, सूक्ष्म और बेबूझ
73. शुभ आशीषों की शीतल छाया में
74. ऊर्जा-जागरण से देह-शून्यता
75. संन्यास है--मन से मनातीत में यात्रा
76. ध्यान--रूपांतरण की विधायक खोज
77. द्वंद्व अज्ञान में ही है
78. काम-ऊर्जा का रूपांतरण--संभोग में साक्षीत्व से
79. आत्म-सृजन का श्रम करो
80. मन का भिखमंगापन
81. स्वयं का मिटना ही एकमात्र तप है
82. वही दे सकते हैं--जो कि हम हैं
83. स्वर्ग और नरक--एक ही तथ्य के दो छोर
84. अधैर्य से साधना में विलंब
85. नासमझदारों की समझ
86. आदमी ऐसा ही जीता है--तिरछा-तिरछा
87. समग्रता से किया गया कोई भी कर्म अतिक्रमण बन जाता है
88. चाह से मुक्ति ही मोक्ष है
89. अंतर-अभीप्सा ही निर्णायक है
90. सत्य की खोजः लंबी यात्रा, अशेष यात्री
91. अज्ञात को ज्ञात से समझने की असफल चेष्टा
92. हर पल जीता हूं पूरा
93. जिंदगी तर्क और गणित से बहुत अधिक है
94. जीवन की धन्यता है--अभिव्यक्ति में--स्वयं की, स्वधर्म की
95. सम-चित्त में अद्वैत स्वरूप का बोध
96. संकल्प पूर्ण हुआ कि शून्य हुआ
97. साक्षी की प्रत्यभिज्ञा (रिकग्निशन) ही ध्यान है
98. साधन के मार्ग पर शत्रु भी मित्र है
99. शांत साक्षीभाव में ही डूब
100. आदमी की कुशलता--वरदानों को भी अभिशाप में बदलने की
101. गहरा खेल शब्दों का
102. पवित्र प्रार्थना--आंसुओं में नहाई
103. पीड़ा को भी उत्सव बना लेने की कला
104. वही है, वही है--सब ओर वही है
105. संकल्प के पंख--साधना में उड़ान
106. मुझसे मिलने की निकटतम द्वार--गहरा ध्यान
107. अंतः संन्यास का संकल्प
108. क्रोध के दर्शन से क्रोध की ऊर्जा का रूपांतरण
109. स्वरहीन-संगीत में डूबो
110. समष्टि को बांट दिया ध्यान ही समाधि बन जाता है
111. प्रभु द्वार पर हुई देर भी शुभ है
112. समझ (अंडरस्टैंडिंग) ही मुक्ति है
113. संन्यास--रूपांतरण की कमियां
114. उसका होना ही उसका ज्ञान भी है
115. जागे बिना सत्य से परिचय नहीं
116. साधना को तो सिद्धि तक पहुंचाना ही है
117. सदा स्मरण रखें--जीवन है एक खेल
118. साहस--अज्ञात में छलांग का
119. जिन खोजा तिन पाइयां
120. अथक श्रम--और परीक्षा धैर्य की
121. जीवन को उत्सव बना लेने की कला संन्यास है
122. प्रभु-पथ से लौटना नहीं है
123. स्वयं को खोकर ही पा सकोगे सर्व को
124. शून्य में नृत्य और स्वरहीन संगीत
125. ‘न-करना’ है करने की अंतिम अवस्था
126. अहंकार की सीमा
127. स्वयं को समझो
128. एकमात्र यात्रा--अंतस की
129. पर करो--कुछ तो करो
130. पहले समझो ही
131. अति सूक्ष्म हैं--अहंकार के रास्ते
132. अपनी चिंता पर्याप्त है
133. फूल, कांटे और साधना
134. जीवन है एक चुनौती
135. छलांग--बाहर--शरीर के, संसार के, समय के
136. स्वयं की खोज ही संन्यास है
137. पागल होने की विधि है यह--लेकिन प्रज्ञा में
138. प्रभु-प्रकाश की पहली किरण
139. अस्वस्थता को भी अवसर बना लो
140. दिन-रात की धूप-छांव में स्वयं को भूल मत जाना
141. नियति का बोध परम आनंद है
142. स्वनिर्मित कारागृहों में कैद आदमी
143. समय रहते जाग जाना आवश्यक है
144. अमूर्च्छा का आक्रमण--मूर्च्छा पर
145. कुछ भी हो--ध्यान को नहीं रोकना है
146. देखो स्थिति और हो जाने दो समर्पण
147. नाचो--गाओ और प्रभु की धुन में डूबो
148. आनंद है महामंत्र
149. जीवन नृत्य है
150. पद घुंघरू बांध

Pre-info speculation

There are two sources testifying as to the existence (at least sometime) of this book. Shailendra has it as one of a number of books of Osho's Hindi letters missing from the wiki. He says there are 100 letters.

Neeten's Osho Source Book (in the Appendix) mentions it among several books of Osho's Hindi letters, says it has 150 letters and dates it 1966 - 1971.

And that's all there is for now! -- doofus-9 06:44, 20 January 2017 (UTC)