Tantra-Sutra, Bhag 3 (तंत्र-सूत्र, भाग तीन) (5 volume set): Difference between revisions

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:Each of the five volumes was subsequently republished under a new title, this one as ''[[Tantrik Sambhog Aur Samadhi (तांत्रिक संभोग और समाधि)]]''. See [[Talk:Tantra-Sutra (तंत्र-सूत्र) (series)|the series' discussion page]] for more traces of its elusive publishing history.|
:Each of the five volumes was subsequently republished under a new title, this one as ''[[Tantrik Sambhog Aur Samadhi (तांत्रिक संभोग और समाधि)]]''. See [[Talk:Tantra-Sutra (तंत्र-सूत्र) (series)|the series' discussion page]] for more traces of its elusive publishing history.|
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== table of contents  ==
{| class = "wikitable"
{{TOCTable | edition 1993.09 | discourses }}
{{TOCLine | 33 | संभोग से ब्रह्मचर्य की यात्रा
:४८. काम-कृत्य में अंतिम शिखर की उतावली मत करो<br>४९. संभोग में कंपना<br>५०. बिना साथी के प्रेम में डूब जाओ<br>५१. हर्ष में लीन हो जाओ<br>५२. होशपूर्वक खाओ और पीओ | [[Vigyan Bhairav Tantra Vol 1 ~ 33 | 22 Feb 1973 pm]] | Woodlands, [[wikipedia:Mumbai |Bombay]] | 1h 20min | audio }}
{{TOCLine | 34 | तांत्रिक संभोग और समाधि
:१. क्या आप भोग सिखाते हैं?<br>२. ध्यान में सहयोग की दृष्टि से संभोग में कितनी बार उतरना चाहिए?<br>३. क्या आर्गाज्म से ध्यान की ऊर्जा क्षीण नहीं होती?<br>४. आपने कहा कि काम-कृत्य धीमे, पर समग्र और अनियंत्रित होना चाहिए। कृपया इन दोनों बातों पर प्रकाश डालें। | [[Vigyan Bhairav Tantra Vol 1 ~ 34 | 23 Feb 1973 pm]] | Woodlands, [[wikipedia:Mumbai |Bombay]] | 1h 14min | audio }}
{{TOCLine | 35 | स्वप्न नहीं, स्वप्नदर्शी सच है
:५३. आत्म-स्मरण<br>५४. संतोष को अनुभव करो<br>५५. निद्रा और जागरण के बीच अंतराल के प्रति सजग होओ<br>५६. जगत को माया की भांति सोचो | [[Vigyan Bhairav Tantra Vol 1 ~ 35 | 24 Feb 1973 pm]] | Woodlands, [[wikipedia:Mumbai |Bombay]] | 1h 36min | audio }}
{{TOCLine | 36 | आत्म-स्मरण और विधायक दृष्टि
:१. आत्म-स्मरण मानव मन को कैसे रूपांतरित करता है?<br>२. विधायक पर जोर क्या समग्र स्वीकार के विपरीत नहीं है?<br>३. इस मायावी जगत में गुरु की क्या भूमिका और सार्थकता है? | [[Vigyan Bhairav Tantra Vol 1 ~ 36 | 25 Feb 1973 pm]] | Woodlands, [[wikipedia:Mumbai |Bombay]] | 1h 23min | audio }}
{{TOCLine | 37 | स्वीकार रूपांतरण है
:५७. कामनाओं में अनुद्विग्न रहो<br>५८. जगत को नाटक की तरह देखो<br>५९. दो अतियों के मध्य में ठहरे रहो<br>६०. स्वीकार-भाव | [[Vigyan Bhairav Tantra Vol 1 ~ 37 | 26 Feb 1973 pm]] | Woodlands, [[wikipedia:Mumbai |Bombay]] | 1h 34min | audio }}
{{TOCLine | 38 | जीवन एक मनोनाट्य है
:१. आधुनिक मन अतीत अनुभवों की धूल से कैसे तादात्म्य कर लेता है?<br>२. जीवन को साइकोड्रामा की तरह देखने पर व्यक्ति अकेलापन अनुभव करता है। तब फिर जीवन के प्रति सम्यक दृष्टि क्या है?<br>३. मौन और लीला-भाव में साथ-साथ कैसे विकास करें?<br>४. आप कहते हैं स्वीकार रूपांतरित करता है, लेकिन तब वासनाओं के स्वीकार में मैं पशुवत क्यों अनुभव करता हूं? | [[Vigyan Bhairav Tantra Vol 1 ~ 38 | 27 Feb 1973 pm]] | Woodlands, [[wikipedia:Mumbai |Bombay]] | 1h 27min | audio }}
{{TOCLine | 39 | यही मन बुद्ध है
:६१. अस्तित्व को लहर की भांति अनुभव करो<br>६२. मन को ध्यान का द्वार बनाओ<br>६३. इंद्रिय-बोध में जागो | [[Vigyan Bhairav Tantra Vol 1 ~ 39 | 28 Feb 1973 pm]] | Woodlands, [[wikipedia:Mumbai |Bombay]] | 1h 25min | audio }}
{{TOCLine | 40 | ज्ञान क्रमिक नहीं, आकस्मिक घटना है
:१. अगर प्रामाणिक अनुभव आकस्मिक ही घटता है तो फिर यह क्रमिक विकास और दृष्टि की स्पष्टता क्या है जो हमें अनुभव होती है?<br>२. जब कोई व्यक्ति साक्षी चैतन्य में स्थित हो जाता है तो ध्रुवीय विपरीतताओं का क्या होता है?<br>३. विचारशून्य बोध में बुद्ध-मन कब उदघाटित होता है?<br>४. आपके ध्यानों में तीव्र रेचन न होने के क्या कारण हैं? | [[Vigyan Bhairav Tantra Vol 1 ~ 40 | 1 Mar 1973 pm]] | Woodlands, [[wikipedia:Mumbai |Bombay]] | 1h 30min | audio }}
{{TOCLine | 41 | तंत्र : शुभाशुभ के पार, द्वैत के पार
:६४. तीव्र संवेदना के क्षण में बोधपूर्ण रहो<br>६५. निर्णायक मत बनो | [[Vigyan Bhairav Tantra Vol 2 ~ 01 | 25 Mar 1973 pm]] | Woodlands, [[wikipedia:Mumbai |Bombay]] | 1h 29min | audio }}
{{TOCLine | 42 | आचरण नहीं, बोध मुक्तिदायी है
:१. क्या अनैतिक जीवन ध्यान में बाधा नहीं पैदा करता है?<br>२. यदि कोई नैतिक ढंग से जीता है तो क्या तंत्र को कोई आपत्ति है?<br>३. यदि कुछ भी अशुद्ध नहीं है तो दूसरों की देशनाएं अशुद्ध कैसे हो सकती हैं?<br>४. क्या किसी भावना या इच्छा की अभिव्यक्ति न करने से उसकी ऊर्जा स्रोत पर लौटकर व्यक्ति को ऊर्जावान कर जाती है?<br>५. दमन या भोग से बचने का प्रयास भी क्या दमन नहीं है? | [[Vigyan Bhairav Tantra Vol 2 ~ 02 | 26 Mar 1973 pm]] | Woodlands, [[wikipedia:Mumbai |Bombay]] | 1h 24min | audio }}
{{TOCLine | 43 | परिवर्तन से परिवर्तन को विसर्जित करो
:६६. उसके प्रति बोधपूर्ण होओ जो तुम्हारे भीतर कभी नहीं बदलता<br>६७. स्मरण रहे कि सब कुछ परिवर्तनशील है | [[Vigyan Bhairav Tantra Vol 2 ~ 03 | 27 Mar 1973 pm]] | Woodlands, [[wikipedia:Mumbai |Bombay]] | 1h 31min | audio }}
{{TOCLine | 44 | आधुनिक मनुष्य प्रेम में असमर्थ क्यों?
:१. आधुनिक मनुष्य प्रेम करने में असमर्थ क्यों हो गया है?<br>२. केंद्र की उपलब्धि के लिए क्या परिधिगत गति बंद होनी आवश्यक है?<br>३. क्या चिंता और निराशा के बिना परिवर्तन को परिवर्तन के द्वारा विसर्जित करना कठिन नहीं है?<br>४. तनाव और भाग-दौड़ से भरे आधुनिक शहरी जीवन के प्रति तंत्र का क्या दृष्टिकोण है? | [[Vigyan Bhairav Tantra Vol 2 ~ 04 | 28 Mar 1973 pm]] | Woodlands, [[wikipedia:Mumbai |Bombay]] | 1h 27min | audio }}
{{TOCLine | 45 | न बंधन है न मोक्ष
:६८. निराश हो रहो<br>६९. बंधन और मुक्ति के पार | [[Vigyan Bhairav Tantra Vol 2 ~ 05 | 29 Mar 1973 pm]] | Woodlands, [[wikipedia:Mumbai |Bombay]] | unknown | missing }}
{{TOCLine | 46 | समझ और समग्रता कुंजी हैं
:१. मोक्ष की आकांक्षा कामना है या मनुष्य की मूलभूत अभीप्सा?<br>२. हिंसा और क्रोध जैसे कृत्यों में समग्र रहकर कोई कैसे रूपांतरित हो सकता है?<br>३. क्या आप बुद्धपुरुषों की नींद की गुणवत्ता और स्वभाव पर कुछ कहेंगे? | [[Vigyan Bhairav Tantra Vol 2 ~ 06 | 30 Mar 1973 pm]] | Woodlands, [[wikipedia:Mumbai |Bombay]] | 1h 25min | audio }}
{{TOCLine | 47 | मूलाधार से सहस्रार की ज्योति-यात्रा
:७०. अपने मेरुदंड में ऊपर उठती प्रकाश-किरणों को देखो<br>७१. एक चक्र से दूसरे चक्र पर छलांग लेते प्रकाश के स्फुलिंग को देखो<br>७२. शाश्वत अस्तित्व की उपस्थिति को अनुभव करो | [[Vigyan Bhairav Tantra Vol 2 ~ 07 | 31 Mar 1973 pm]] | Woodlands, [[wikipedia:Mumbai |Bombay]] | 1h 31min | audio }}
{{TOCLine | 48 | तुम ही लक्ष्य हो
:१. प्रेरणा और आदर्श में क्या फर्क है? क्या किसी जिज्ञासु के लिए किसी से प्रेरणा लेना गलत है?<br>२. सामान्य होना क्या है? और आजकल इतनी विकृति क्यों है?<br>३. बोध को उपलब्ध हुए बिना उसे 'अनुभव' कैसे किया जा सकता है? जो अभी घटा नहीं है उसका भाव कैसे संभव है? | [[Vigyan Bhairav Tantra Vol 2 ~ 08 | 1 Apr 1973 pm]] | Woodlands, [[wikipedia:Mumbai |Bombay]] | 1h 20min | audio }}
|}


[[category:Hindi Publications|Tantra Sutra Bhag 03 (तंत्र सूत्र भाग तीन) (2)]]
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[[category:Translations from English (hi:अंग्रेजी से अनुवाद)|Tantra Sutra Bhag 03 (तंत्र सूत्र भाग तीन) (2)]]
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Revision as of 07:09, 4 March 2020


तंत्र-सूत्र (विज्ञान भैरव तंत्र) भाग तीन
ओशो द्वारा भगवान शिव के विज्ञान भैरव तंत्र पर दिए गए 80 प्रवचनों मे से 33 से 48 प्रवचनों का संकलन।
translated from
English : The Book of the Secrets, Vol 3
notes
This is the third volume of the five-volume set of Tantra-Sutra (तंत्र-सूत्र) (series), translations from the English series of talks on Vigyan Bhairav Tantra.
Previously published as Tantra-Sutra, Bhag 5 (तंत्र-सूत्र, भाग पांच) and Tantra-Sutra, Bhag 6 (तंत्र-सूत्र, भाग छह).
Each of the five volumes was subsequently republished under a new title, this one as Tantrik Sambhog Aur Samadhi (तांत्रिक संभोग और समाधि). See the series' discussion page for more traces of its elusive publishing history.
time period of Osho's original talks/writings
Feb 22, 1973 to Apr 1, 1973 : timeline
number of discourses/chapters
16 (numbered 33-48)   (see table of contents)


editions

Tantra-Sutra, Bhag 3 (तंत्र-सूत्र, भाग तीन) (5 volume set)

Year of publication : Sep 1993
Publisher : Rebel Publishing House Pvt Ltd
ISBN
Number of pages : 320
Hardcover / Paperback / Ebook : H?
Edition notes :

Tantra-Sutra, Bhag 3 (तंत्र-सूत्र, भाग तीन) (5 volume set)

Year of publication : Jan 1998
Publisher : Rebel Publishing House Pvt. Lt., Pune, India
ISBN 81-7261-089-0 (click ISBN to buy online)
Number of pages :
Hardcover / Paperback / Ebook : H
Edition notes :

Tantra-Sutra, Bhag 3 (तंत्र-सूत्र, भाग तीन) (5 volume set)

Year of publication : 2003
Publisher : Rebel Publishing House, Pune, India
ISBN
Number of pages :
Hardcover / Paperback / Ebook :
Edition notes :

table of contents

edition 1993.09
chapter titles
discourses
event location duration media
33 संभोग से ब्रह्मचर्य की यात्रा
४८. काम-कृत्य में अंतिम शिखर की उतावली मत करो
४९. संभोग में कंपना
५०. बिना साथी के प्रेम में डूब जाओ
५१. हर्ष में लीन हो जाओ
५२. होशपूर्वक खाओ और पीओ
22 Feb 1973 pm Woodlands, Bombay 1h 20min audio
34 तांत्रिक संभोग और समाधि
१. क्या आप भोग सिखाते हैं?
२. ध्यान में सहयोग की दृष्टि से संभोग में कितनी बार उतरना चाहिए?
३. क्या आर्गाज्म से ध्यान की ऊर्जा क्षीण नहीं होती?
४. आपने कहा कि काम-कृत्य धीमे, पर समग्र और अनियंत्रित होना चाहिए। कृपया इन दोनों बातों पर प्रकाश डालें।
23 Feb 1973 pm Woodlands, Bombay 1h 14min audio
35 स्वप्न नहीं, स्वप्नदर्शी सच है
५३. आत्म-स्मरण
५४. संतोष को अनुभव करो
५५. निद्रा और जागरण के बीच अंतराल के प्रति सजग होओ
५६. जगत को माया की भांति सोचो
24 Feb 1973 pm Woodlands, Bombay 1h 36min audio
36 आत्म-स्मरण और विधायक दृष्टि
१. आत्म-स्मरण मानव मन को कैसे रूपांतरित करता है?
२. विधायक पर जोर क्या समग्र स्वीकार के विपरीत नहीं है?
३. इस मायावी जगत में गुरु की क्या भूमिका और सार्थकता है?
25 Feb 1973 pm Woodlands, Bombay 1h 23min audio
37 स्वीकार रूपांतरण है
५७. कामनाओं में अनुद्विग्न रहो
५८. जगत को नाटक की तरह देखो
५९. दो अतियों के मध्य में ठहरे रहो
६०. स्वीकार-भाव
26 Feb 1973 pm Woodlands, Bombay 1h 34min audio
38 जीवन एक मनोनाट्य है
१. आधुनिक मन अतीत अनुभवों की धूल से कैसे तादात्म्य कर लेता है?
२. जीवन को साइकोड्रामा की तरह देखने पर व्यक्ति अकेलापन अनुभव करता है। तब फिर जीवन के प्रति सम्यक दृष्टि क्या है?
३. मौन और लीला-भाव में साथ-साथ कैसे विकास करें?
४. आप कहते हैं स्वीकार रूपांतरित करता है, लेकिन तब वासनाओं के स्वीकार में मैं पशुवत क्यों अनुभव करता हूं?
27 Feb 1973 pm Woodlands, Bombay 1h 27min audio
39 यही मन बुद्ध है
६१. अस्तित्व को लहर की भांति अनुभव करो
६२. मन को ध्यान का द्वार बनाओ
६३. इंद्रिय-बोध में जागो
28 Feb 1973 pm Woodlands, Bombay 1h 25min audio
40 ज्ञान क्रमिक नहीं, आकस्मिक घटना है
१. अगर प्रामाणिक अनुभव आकस्मिक ही घटता है तो फिर यह क्रमिक विकास और दृष्टि की स्पष्टता क्या है जो हमें अनुभव होती है?
२. जब कोई व्यक्ति साक्षी चैतन्य में स्थित हो जाता है तो ध्रुवीय विपरीतताओं का क्या होता है?
३. विचारशून्य बोध में बुद्ध-मन कब उदघाटित होता है?
४. आपके ध्यानों में तीव्र रेचन न होने के क्या कारण हैं?
1 Mar 1973 pm Woodlands, Bombay 1h 30min audio
41 तंत्र : शुभाशुभ के पार, द्वैत के पार
६४. तीव्र संवेदना के क्षण में बोधपूर्ण रहो
६५. निर्णायक मत बनो
25 Mar 1973 pm Woodlands, Bombay 1h 29min audio
42 आचरण नहीं, बोध मुक्तिदायी है
१. क्या अनैतिक जीवन ध्यान में बाधा नहीं पैदा करता है?
२. यदि कोई नैतिक ढंग से जीता है तो क्या तंत्र को कोई आपत्ति है?
३. यदि कुछ भी अशुद्ध नहीं है तो दूसरों की देशनाएं अशुद्ध कैसे हो सकती हैं?
४. क्या किसी भावना या इच्छा की अभिव्यक्ति न करने से उसकी ऊर्जा स्रोत पर लौटकर व्यक्ति को ऊर्जावान कर जाती है?
५. दमन या भोग से बचने का प्रयास भी क्या दमन नहीं है?
26 Mar 1973 pm Woodlands, Bombay 1h 24min audio
43 परिवर्तन से परिवर्तन को विसर्जित करो
६६. उसके प्रति बोधपूर्ण होओ जो तुम्हारे भीतर कभी नहीं बदलता
६७. स्मरण रहे कि सब कुछ परिवर्तनशील है
27 Mar 1973 pm Woodlands, Bombay 1h 31min audio
44 आधुनिक मनुष्य प्रेम में असमर्थ क्यों?
१. आधुनिक मनुष्य प्रेम करने में असमर्थ क्यों हो गया है?
२. केंद्र की उपलब्धि के लिए क्या परिधिगत गति बंद होनी आवश्यक है?
३. क्या चिंता और निराशा के बिना परिवर्तन को परिवर्तन के द्वारा विसर्जित करना कठिन नहीं है?
४. तनाव और भाग-दौड़ से भरे आधुनिक शहरी जीवन के प्रति तंत्र का क्या दृष्टिकोण है?
28 Mar 1973 pm Woodlands, Bombay 1h 27min audio
45 न बंधन है न मोक्ष
६८. निराश हो रहो
६९. बंधन और मुक्ति के पार
29 Mar 1973 pm Woodlands, Bombay unknown missing
46 समझ और समग्रता कुंजी हैं
१. मोक्ष की आकांक्षा कामना है या मनुष्य की मूलभूत अभीप्सा?
२. हिंसा और क्रोध जैसे कृत्यों में समग्र रहकर कोई कैसे रूपांतरित हो सकता है?
३. क्या आप बुद्धपुरुषों की नींद की गुणवत्ता और स्वभाव पर कुछ कहेंगे?
30 Mar 1973 pm Woodlands, Bombay 1h 25min audio
47 मूलाधार से सहस्रार की ज्योति-यात्रा
७०. अपने मेरुदंड में ऊपर उठती प्रकाश-किरणों को देखो
७१. एक चक्र से दूसरे चक्र पर छलांग लेते प्रकाश के स्फुलिंग को देखो
७२. शाश्वत अस्तित्व की उपस्थिति को अनुभव करो
31 Mar 1973 pm Woodlands, Bombay 1h 31min audio
48 तुम ही लक्ष्य हो
१. प्रेरणा और आदर्श में क्या फर्क है? क्या किसी जिज्ञासु के लिए किसी से प्रेरणा लेना गलत है?
२. सामान्य होना क्या है? और आजकल इतनी विकृति क्यों है?
३. बोध को उपलब्ध हुए बिना उसे 'अनुभव' कैसे किया जा सकता है? जो अभी घटा नहीं है उसका भाव कैसे संभव है?
1 Apr 1973 pm Woodlands, Bombay 1h 20min audio